३६ 99 रामचन्द्रिका सटीक। | मारीचादिको रामचन्द्र मारयोहै तब तिनको भारत पीड़ित दुःखितेति शब्द | सुनि रावण स्वयंवर सभाते गयो सो भेद कछू ब्राह्मण तौ जानत नहीं तासों संदेहविशिष्ट है कहत है कि काहू बली कहूं कौन्यो स्थानमें शर बाण सों आसर कहे काहू राक्षस को मारयो "ऋयादो-हम आसर इत्यमरः सुदभासुर मारिय कहूं यह पाठ है तौ सुदनामा राक्षस ते मा कहे उत्पन्न जो असुर राक्षस है मारीच ताको सुदनाम राक्षसकी स्त्री ताड़का है ताको पुत्र पारीच है औ कहूं शरमारिच मारिय पाठ है तो शरसों मारीच नाम राक्षसको मारयो ३१ अनंग विदेह ३२॥ इति श्रीमजनअनलिजन माननीजानकीजनिनसायजनन प्रसाद- निर्मितायां रामभक्तिमकाशिकायां चतुर्थःप्रकाशः॥४॥ दोहा ॥ यह प्रकाश पंचम कथा रामगवन मिथिलाहि ॥ उद्धारण गौतमघरणि स्तुति अरुणोदय आहि १ मिथिला- पतिके वचन अरु धनुभंजन उरधार ॥ जैमाला दुंदुभि अ- मर वर्षन फूल अपार २ ब्राह्मण-तारकछंद ॥ जब प्रानि भई सवको दुचिताई । कहि केशव काहुपै मेटि न जाई ॥ सिय संगलिये ऋषिकी तिय आई । इक राजकुमार महा सुखदाई ३ मोहनछंद ॥ सुंदरवपु अतिश्यामल सोहै । देखत सुर नर को मन मोहै । प्रानिय लिखि सियको बरु ऐसो। रामकुमारहि देखिय जैसो ४ तोटकछंद ॥ ऋषिराज सुनी यह वात जहीं। सुखपाय चले मिथिलाहि तहीं ॥ वन राम शिला दरशी जवहीं । तिय सुंदररूप भई तवहीं ५ विश्वा- मित्र-सोरठा ॥ गौतमकी यह नारि इंद्रदोष दुर्गति गई । देखि तुम्हें नरकारि परमपतित पावन भई ६ कुसुमविचित्रा छंद ॥ तेहि अतिरूरे रघुपति देख्यो । सब गुणपूरे तनमन लेख्यो । यह वर माँग्यो दियो न काहू। तुम मम मनते कहूं न जाहू ७ कराईसवंद ।। तहँ ताहिदै वरुको चले रघुनाथजू । अतिशूर सुंदर यो लसैं ऋषिसाथजू । जनु सिंहके सुत दोउ
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