३७ रामचन्द्रिका सटीक । तू अपने मदनासनको। ऐसेहि कैसे मनोरथ पूजत पूजे विना नृपशासनको २२ रावण-बंधुछंद ॥ बाण न बात तुम्हें कहि पावै । बाण ॥ सोई कहौं जिय तोहिं जो भावै ॥ रावण ॥ का करिहो हम योंही बरेंगे । बाण ॥ हैहयराज करी सो करेंगे२३ रावण-दंडक|भौंर ज्यों भँवत भूत वासुकी गणेश- युत मानो मकरंदबुंद माल गंगाजलकी । उड़त पराग पटनालसी विशालबाहु कहा कहीं केशोदास शोभा पलपल की॥ आयुध सघन सर्वमङ्गलासमेत शर्व पर्वत उठाइ गति कीन्हीं है कमलकी 1 जानत सकल लोक लोकपाल दिक- पाल जानत न बाण बात मेरे बाहुबलकी २४ ॥ २१ आसन विछावने औ वासन वस्त्रनको छोड़िदे अर्थ मल्लरूप काछि घनुप उठायो पाइ अथवा सीताके लीवेकी जे आशा है तिनकी वासना स्मरण छोडिदे अपने मदनाशनको पोको तू जानत है कि नहीं जानत जो ऐसी बात कहत है कि सीता को विना धनुष तोरेही परिहैं अथवा अपने मदनाशनको धनुषको अर्थ यह धनुष तुम्हारे मदको नाश करि है नृपशा- सन धनुष उठाइयो २२ हैहयराज सहस्रार्जुन २३ पासुकी सर्प श्री गणेश सहित भूतगण जा पर्वत में कमल के भौंरसम #वत भये श्री महादेव के शीश को जो गंगाजल गिरयो ताकी माल मकरंद पुष्परस भयो औ उ- इत जे पार्वती श्रादिके पट घन हैं तेई पराग पुष्पधूलि औ मेरो बाहु जो है सो नाल कमलदंड भयो एते में या जनायो कि जब मैं कैलास उठायो तब अतिभयसों गणेशादि भ्रमत भये औ अतिशीघ्र उठायो तासों शंभु शीशको गंगाजल गिरयो औ वस्त्र उड़त भये श्री आयुध सघन कहि या जनायो कि तुम एक शंभु धनुष उठाइको कठिन मानतही वा पर्वत में ऐसे अनेक प्रायुध रहे सर्वमंगला पार्वती २४ ॥ मधुभारछंद ॥ तजिकै सुरारि । रिस चित्तमारि ॥ दश कंठ प्रानि।धनु छुयो पानि २५ विमति ॥ तुम बलनिधान । धन प्रतिपरानपीसजह अंगनाहिंडोहि भंग २६ सवैया॥
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/४२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।