रामचान्द्रका सटाक। अखंड ॥ अब जो यह कहि देहिगो मदनकदन कोदंड १७ संयुतछंद ॥ ब्रा वाण रावणकी सुन्यो । शिर राजमंडल में धुन्यो । विमति ॥ जगदीश अब रक्षा करौ । विपरीत बात सबै हरौ १८ दोहा ॥ रावण बाण महाबली ज़ानत सब सं. सार ॥ जो दोऊ धनु कर्षिहें ताको कहा विचार १६ बाण- सवैया ॥ केशव औरते और भई गति जानि न जाइ कडू करतारी। शूरनके मिलिबे कहँ प्राय मिल्यो दशकंठ सदा अविचारी ॥ बादिगयो बकवाद वृथा यह भूलि न भाट सुनावहिं गारी । चाप चढ़ाइहौं कीरतिको यह राजकरै तेरी राजकुमारी २०॥ जाकर ने फैटभादि वली दैत्यनको मारयो फेरि चौदहो लोककी रक्षा करत है यो कहिकर कि घड़ी शक्ति जनायो फेरि श्रीकमला लक्ष्मी के कुचनमें कुंकुम केशर के मंडित में भूपित करै में अर्थ मकरिकापत्र बनावै मों पंडित है यासों या जनायो कि जिन विष्णु की लक्ष्मी स्त्री हैं तासों सब सब पदार्य सों पूरण जानो यामें येती शक्ति है शारदकर हाथ करसार जे ब्रह्मा, तिन- हुँनके करतार जे विष्णु हैं तिन पलिपै पांगिवेको पसारयो ऐसे बली विष्णु बलि पै भिक्षाही मागिपायो जीतिक न पाई तासों विष्णुहसों अधिक पली औदाता जानो इति भावार्थः १६।१७ व्रत धनुष उठाइवे की प्रतिज्ञा १८१६ विमतिके ऐसे विकल वचन सुनि घाण कह्यो कि हे भाट! सीताके ब्यादिवे को बाण धनुष उठावत है ऐसी जो गारी है ताको भूलिहू ना सुनाउ सीता हमारी माताहैं उनतिसय दोहा में कहा है कि सीता पेरी माइ २०॥ रावण-मधुचंद ॥ मोकहँ रोंकि सकै कहि को रे । युद्ध जुरे यमहूं कर जोरे। राजसभा तिनुका करि लेखों देखिके राजसुता धनु देखो २१ सवैया। बाण कयो तब रावणसों अब बेगि चढ़ाउ शरासनको । बातें बनाइ बनाइ कहा कहै| बोड़िदे श्रासन वासनको । जानत है किधौं जानत नाहिंन
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