पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/४०

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रामचन्द्रिका सटीक। ने जिनको सुखद चांदनीसों सुख दियो युद्ध ना कियो श्री कालदंड यमराज को आयुध ताके यमराजरक्षा शत्रुवध करिबे को मान गई रह्यो ताको खंडन कियो औ काल जे यमराज हैं तिनहीं को खंड खंडना इन ऐसी कियो मानो हाल कहे यमके काल ईश्वर कीन्हों अर्थ जैसे यमको काल निर्भय है यमके खंडन करत है तैसे.करचो यासों या जनायो कि मैं इन भुजदंडनसों इनको सबको जीत्यों है केरावार कोदंड धनुप विश जो नारी विडंबना निंदा १०॥ बाण-तुरंगमछंद ॥ बहुत वदन जाके । विविध वचन ताके ॥ रावण ॥ बहुभुजयुत जोई । सबल कहिय सोई ११ दोहा॥ अति असार भुजभारहीं बली होहुगे बान॥बाण ॥ मम बाहुन को जगत में सुनु दशकंठ विधान १२ सवैया ॥ हौं जवहीं जब पूजन जात पितापद पावन पापप्रनासी । देखि फिरौं तवहीं तब रावण सातौरसातल के जे विलासी॥ लै अपने भुजदंड अखंड करौं क्षितिमंडल छत्रप्रभासी। जाने को केशव केतिक बार मैं शेशके शीशन दीन उ- सासी १३ रावण-कमलछंद । तुम प्रबल जो हुते । भुज- बलनि संयुते ॥ पितहि भुव ल्यावते । जगत यश पावते १४ बाण-तोमरछंद ॥ पितु मानिये किहि श्रोक । दिय दक्षिणा सब लोक ॥ यह जानिये वन दीन। पितु ब्रह्मके रसलीन१५॥ रावण के वचन में काकूक्ति है ११ असार वलरहित १२ अखंड संपूर्ण १३।१४ हे रावण! दीन हमारो पिता ब्रह्म परब्रह्म के रस स्वाद में लीन | है तू यह जानि कहे जानु १५ ॥ सवैया॥ कैटभ सो नरकासुरसो पल में मधु सो मुर सो ज्यहि मायो । लोक चतुर्दश रक्षक केशव पूरण वेद पुराण विचाखो॥ श्रीकमलाकुचकुंकुममंडित पंडित देव प्रदेव नि- हाखो । सो कर माँगन को बलि पै करतारहु ने करतार पसांस्यो १६ रावण-दोहा।। हमैं तुम्हें नहिं बझिये विक्रम वाद