रामचन्द्रिका सटीक । जो या धनुपको उठाइ है ताको नृषकन्या व्यर्थ पुष्पमाला पहिराइ है ऐसे विमति के वचन सुनि सब राजसमाज समूह धनुष उठाइवे में उद्यम कहे उपाइ करतभये परंतु शरासन ने भासनको हू न छोड़त भयो भर्थ रंचकहू ना उठ्यो ३३ जब धनुष काहू सों न उठ्यो तब क्रोधयुक्त है विमति कसो धनुष उठाइयेमें राजकुमारन शक्ति बल नहीं कियो धनुषकी भक्ति किया है काहे कि धनुष न नयो औ पलमात्र सबके शीश नवत भये तो जाकी जो भक्ति करतहैं ताको शीश नावत प्रणाम करत हैं तासों आप खर गर्दभ में चढ़े अर्थ गर्दभ में चढ़े पाणी सब निन्दितभये ३४ किन चै गई कहे गर्भपतन फाहे ना भयो३॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादायजनजानकी- प्रसाइनिर्मितायां रामभक्तिप्रकाशिकायां तृतीयःप्रकाशः ॥ ३ ॥ दोहा । कथा चतुर्थ प्रकाशमें बाणासुरसंवाद ।। रावण सों अरु धनुष सों दशमुखवाणविषाद १ सवही को समुझेउ सबन बलविक्रम परिमाण ॥ सभामध्य ताही समय प्राये रावण बाण २ डिल्लचंद ॥ नरनारि सबै । भयभीत तबै ।। अचरिज्जु यहै । सब देखि कहै ३ दोहा ॥ है राकस दश- शीश को दैयत बाहु हजार ॥ कियो सबनि के चित्त रस अद्भुत भय संसार ४ रावण-विजोहाछंद ॥ शंभुकोदंड दै। राजपुत्री कितै ॥ टूक दै तीनिकै । जाहुँ लंकाहि लै ५ वि- मति-शशिवदनाछंद ॥ दशशिर भावो । धनुष उठावो। कछु बल कीजै । जग यश लीजै ६ बाण-गीतिकाछंद ॥ दशकंठरे शठ छोड़ि दे हठ बारबार न वोलिये। अब भाजु राजसमाज में बल साजु चित्त न डोलिये ॥ गिरिराज ते गुरु जानिये सुरराजको धनु हाथलै । सुख पाय ताहि चढ़ाय के घरजाहिरे यश साथलै ७॥ रावणसों बाणासुरको संवाद है ना उठ्यो तासौ दशमुख श्री बाणको धनुष सों विषाद दुःख है १ । २ वाण रावणको देखि सब प्राणी आश्चर्य यहै शब्द कहत भये ३ दशशीशको राक्षस औ हज़ारबाहुको दैत्य सवनके
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