३४४ रामचन्द्रिका सटीक । भरी । जाइकै अवलोकियो रणमें गिरे गिरि से करी ३५ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां भरतसमागमोनाम पत्रिंशः प्रकाशः॥३६॥ मोहत कहे मूछित करत हैं अर्थ हीनो करत हैं ३० लोक में घातन करिकै अवलोकन दोषनसों पूरिरहे हैं ३१ जबते अलोक प्राप्त भयो तब ते ता प्रलोक के मिटिबे के यतन को छोड़ोई चाहत रहे सो युद्धरूपी निमित्त कारण पाइकै तनको छोड़ि मनको पावन करयो शत्रुघ्नके बंधु लक्ष्मण सीताको वनमें छोड़ि आये या विधि लोकापवाद लाजनमों शत्रुघ्नहू तनको छोड़यो पूत पवित्र छंद उपजाति है ३२ पातक कौन एतो भरतसों रामचन्द्रको प्रश्न है ३३ तेहि तीर्थ अर्थ युद्धतीर्थ में छंद उपजाति गाथा है ३४ संगर युद्ध रोदमी कहे भू, आकाश नृपता कहे नृप- समूहनसों भरी-" द्यावाभूमी च रोदसी इत्यमरः ३५ ॥ इति श्रीमजगज ननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मिनायांरामभहित्यकाशिकायां पत्रिंशः प्रकाशः॥ ३६ ॥ दोहा॥ सैंतीसवें प्रकाशमें लव कटु बैन बखान ॥ मो- हन बहुरि भरतको लागे मोहनबान १ रूपमालाछंद ॥ जामवंत विलोकिकै रणभीमभू हनुमंत । शोणकी सरिता वही सुअनंतरूप दुरंत ॥ यत्र तत्र ध्वजापताका दीह देहनि भूप। टिटूटि परे मनो बहुवातवृक्ष अनूप २ पुंजकुंजर शुभ्रस्यंदन शोभिजै सुठिसूर । ठेलिठेलि चले गिरीशनि पेलिशोणितपूर ॥ग्राह तुंगतुरंग कच्छप चारु चर्म विशाल । चक्रसे रथचक्रपैरत गृद्धवृद्धमराल ३ केकरे कर बाहु मीन गयंदशुंडभुजंग। चीर चौर सुदेशके शशिबाल जानि सु- रंग ॥ बालका बहुभांति मणिमाल जालप्रकास । पैरि पार भये ते द्वै मुनिबाल केशवदास ४॥
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