रामचन्द्रिका सटीक। ३१ समति-दोहा ॥ कुंडलपरसत मिस कहत कहो कौन यह राज॥शंभुशरासनगुन करो कर्णालंबित आज २५ विमति- सोरठा ॥ जानहिं बुद्धिनिधान मत्स्यराज यहि राजको॥ समर समुद्र समान जानत सब अवगाहिकै २६ सुमति- दोहा ॥ अंगरागरंजित रुचिर भूषणभूषित देह ॥ कहत वि- दूषक सों कछू सो पुनि को नृप येह २७॥ नृपमाणिक्य नृपश्रेष्ठ औ उत्तम माणिक्य राजा कैसो है कि सुंदर है देश द्राविड़ादि जामें ऐसी जो दक्षिणदिशारूपी तिय है ताको अतिभावत हैजा दक्षिण दिशाके कटितट में कई मध्यभाग में सुंदर है पटपद्धति जाको औ कल कहे दुःख रहित ऐसी जो कांचीनाम पुरी है ताको मंडत है भूषित करत है अर्थ कि याके देशमें मध्यभाग में विष्णुकांची शिवकांची पुरी है तामें जाको वास है माणिक्य कैसोहै कि सुदेश कहे सुंदरी दक्षिण कहे प्रवीण जे तिय स्त्री हैं तिनको प्रतिभावतो है फेरि कैसो है कि सुष्टुपट वस्त्रयुक्त जो कटि- तट है तामें कलकहे अव्यक्त मधुर स्वरयुक्त जो कांची क्षुद्रघंटिका है ताको मंडई कहे भूषित शोभित करै है २४.कर्णालंबित करो कर्णपर्यंत बैंचो २५ मत्स्यनाम जो देशविशेष है मछरीबंदर करि प्रसिद्ध है ताको यह राजा है और मत्स्यराज राघवं मत्स्य सो जैसे समुद्र को अवगाहि मँझाइकै सव जानत हैं ऐसे राजा समररूपीसमुद्र को मँझाइ कै सब समर भेद को जानत है अर्थ कि बड़ो शूर है “ मत्स्यो मीने पुमान् भूम्नि देशे इति मेदनी" २६ विदूषक मसखरा "हास्यकारी विदूषक इत्यमरः" २७॥ विमति-सोरठा ॥ चंदनचित्र तरंग सिंधुराज यह जा- निये॥ बहुत वाहिनी संग मुक्कामाल विशालउर २८ दोहा॥ सिगरे राजसमाज के कहे गोत गुणग्राम ॥ देश स्वभाव प्र- भाव अरु कुल बल विक्रम नाम २६ घनाक्षरी ॥ पावक पवन मणि पन्नग पतंग पितृ जेते ज्योतिवंत जग ज्योतिषिन गाये हैं । असुर प्रसिद्ध सिद्ध तीरथ सहित सिंधु केशव चराचर जे वेदन बताये हैं ॥अजर अमर अज अंगी औं
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।