३४२ रामचन्द्रिका सटीक । उपवीतहि गात ॥ इतेपर बाल बहिक्रम जानि । हिये करुणा उपजै अति पानि १६ विलोचन लोचतहैं लखि तोहिं । तजो हठ प्रानि भजौ किनि मोहिं ॥ क्षम्यों अपराध अजौं घर जाहु । हिये उपजाउ न मातहिं दाहु २० दोधकछंद ।। हौं इतिहाँ कबहूं नहिं तोहीं। तू बरु बाणन बेधहि मोहीं ॥ बालक विप्र कहा हनियेजू । लोक अलोकनमें गनियेजू २१॥ "एकोदशसहस्राणि योधयेद्यस्तु धन्विनाम् ॥ शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च स महारथ उच्यते " १७ । १८।१६ हमारे लोचन तुम्हारे देखिबे को लोचत कहे चाहत हैं भजो मिली २० ॥ २१ ॥ हरिणीचंद ॥ लक्ष्मण हाथ हथ्यार धरौ । यज्ञ वृथा प्रभु को न करौ ॥ हौं हयको कबहूं न तजौं । पट्ट लिख्यो सोइ बांचि लजौं २२ स्वागताछंद|बाण एक तवलक्ष्मण छंड्यो। चर्म वर्म बहुधा तिन खंडयो॥ताहि हीन कुश चित्तहि मोहै। धूमभिन्न जनु पावक सोहै २३ रोषवेष कुश बाण चलायो। पौनचक्र जिमि चित्त भ्रमायो॥मोह मोहि रथ ऊपर सोये। ताहि देखि जड़जंगग रोये २४ नाराचछंद ॥ विराम राम जानिकै भरत्थ सों कथा कहैं । विचारि चित्तमांक वीर वीर वे कहां रहैं । सरोष देखि लक्ष्मणे त्रिलोक्य तौ विलुप्त है। अदेवदेवता त्रसे कहा ते बाल दीन है २५ राम-रूपमाला छंद ॥ जाहु सत्वर दूत लक्ष्मण हैं जहां यहि बार । जाइकै यह बात वर्णहु रक्षियो मुनिबार ।। हैं समर्थ सनाथ वे अस- मर्थ और अनाथ । देखिबेकहँ ल्याइयो मुनिवाल उत्तम गाथ २६ सुंदरीछंद ॥ भग्गुल आइगये तबहीं बहु । बार पुकारत भारत रक्षहु ॥ वे बहुभांतिन सेनसँहारत । लक्ष्मण तो तिनको नहिं मारत २७ बालक जानि तकरुणा करि।
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