समचन्द्रिका सटीक। निशिपालिकाछंद ॥ रोषकरि वाण बहुभांति लव छ. डियो । एकध्वज सूतयुग तीनि रथ खंडियो। शस्त्र दशरत्य सुत अस्त्र कर जोधरै। ताहि सियपुत्र तिलतूलसम खंडरै २० तारकछंद ॥ रिपुद्दाकर बाण बहै कर लीन्हो । लवणासुर को रघुनंदन दीन्हो ॥ लवके उरमें उरभयो वह पत्री । मुर- झाइ गिखो धरणीमहँ क्षत्री २१ मोटनकछंद ।। मोहे लव भूमि परे जबहीं। जयदुंदुभि बाजि उठे तवहीं । भुवते रथ ऊपर प्रानिधरे। शत्रुघ्नसो यों करुणानि भरे २२ घोड़ो तवहीं तिन छोरि लयो । शत्रुघ्नहि आनँद चित्त भयो । लैकै लव को ते चले जबहीं। सीतापहँ वालगये तवहीं २३ वालक- झूलनाचंद ॥ सुन मैथिली नृप एकको लव बांधियो वर- वाजि । चतुरंगसेन भगाइकै तब जीतियो वह प्राजि ॥ उर लागिगो शर एकको भुवमें गिखो मुरझाइ। वह वाजि लै लवलै चल्यो नृप दुंदुभीन बजाइ २४ दोहा ॥ सीतागीता पुत्र को सुनि सुनि भई अचेत।मनों चित्र की पुत्रिका मन म वचन समेत २५ सीता-झूलनाछंद ॥ रिपु हाथ श्री- रघुनाथ के सुत क्यों परे करतार । पति देवता सबकाल जो लव जो मिलै यहि बार ॥ ऋषि हैं नहीं कुश है नहीं लव लेइ कौन छड़ाइ । वनमांझ टेर सुनी जहीं कुशभाइयो श्रकुलाइ २६॥ एक बाण सों ध्वजा खंड्यो औ द्वै वाणों सूत सारथी खंड्यो ौ तीन बाणसों रथ खंड्यो तिल औ तूल रुई सम खंडरै कहे खंडन करत है २० पत्री बाण २१ । २२ २३ । २४ । २५ २६ ॥ कुश-दोहा॥रिपुहि मारि संहारि दल यमते लेउँछड़ाइ। लवहि मिले हौं देखिहौं माता तेरे पाइ २७ सवैया॥ गहि
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