रामचन्द्रिका सटीक। ३३३ बली हैं तिनके तुम बंधुही हो तो कहे तोही कहे निश्चय करि हमको हतौ मारौ वाको रामचन्द्र को चित्तंभायो करो महादेव की सौंह है जो तू रामचन्द्रको बंधुही है तो बड़ी भक्ष्य कहे मेरे जे भक्ष्य यां ठौर के वासी हैं तिनको पालनहार तू पायो है ५५ प्रयोगी कहे चलावनहार सवर्षे कहे बाण वर्षासहित जे दोऊ विनाशी कहे परस्पर इंता हैं तिनको हर्ष नशि गयो है अर्थ विकल हैं ५६ । ५७॥ मोटनकछंद ॥ लीन्हों लवणासुर शूल जहीं। मारेउ रघु- नंदन बाण तहीं ॥ काट्यो शिर शूलसमेत गयो। शूली कर सुःख त्रिलोक भयो ५८ बाजे दिवि दुंदुभिदीह तबै। आये सुर इन्द्रसमेत सवै ॥ देव ॥ कीन्हों बहु विक्रम या रन में। मांगौ वरदान रुचै मनमें ५६ शत्रुघ्न-प्रमाणिकाछंद ॥ सनाढ्यवृत्ति जो हरै। सदा समूल सो जरै ॥ अकालमृत्यु सों मरै । अनेकनर्क सो परै ६० सनाढयजाति सर्वदा। यथा पुनीत नर्मदा ॥ भऊँ सर्जे जे संपदा। विरुद्ध ते असंपदा ६१ दोहा । मथुरामंडल मधुपुरी केशव स्ववश वसाइ ॥ देखे तब शत्रुघ्नजू रामचन्द्रके पाइ ६२ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायां लवणासुरवधवर्णनं नाम चतुस्त्रिंशत्प्रकाशः ॥३४॥ ५८ | ५६ । ६० कहिवे को हेतु यह कि ऐसे जे सनाढ्य हैं तिनकी भक्ति हम को वर दीजै ६१ । ६२ ॥ इति श्रीमजगज्जननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायां रामभक्तिप्रकाशिकायां चतुस्त्रिंशत्प्रकाशः ॥ ३४ ॥ दोहा ॥ पैंतीसवें प्रकाशमें अश्वमेध किय राम ॥ मोहन लवशत्रुघ्नको हैहै संगरधाम १ विश्वामित्र वशिष्ठसों एकसमय रघुनाथ । प्रारंभो केशव करन अश्वमेध की गाथ २ राम-
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