रामचन्द्रिका सटीक। चारण भाट हैं ते दिशि विदिशन में अनुरक्त संलग्न फिरत हैं अर्थ जाको यश दिशि विदिशन में भाट गावत फिरत हैं औ यशसदृश जो परिमल सु- गंध है तामें मत्त चारणसदृश जे चंचरीक भ्रमर हैं ते दिशि विदिशन में अनु- रक्त फिरत हैं अर्थ जाके सुगंध में मत्त है भ्रमर दिशि विदिशन में उड़त फिरत हैं २० सुखकहे सहज मुख के वासु सुगन्धते २१ काशमीर को तिलक कहे काशमीर देशको राजा श्री काशमीर कहे केशरिको तिलक कैसोहै राजा औ तिलक राजराज जे कुबेर हैं तिनकी दिशा उत्तर दिशारूपी जो वाम स्त्री है ताके भालको लालरक्त जो मुमेलहै सो है लोभी सदा ज्यहि राजाको अर्थ | सुमेरु के यह इच्छा रहति है कि इंद्र को राज छोड़ि या राज.को राज हमपर | होय यासों या जनायो कि राजा रूप गुण करि इंद्रहू सों अधिक है अथवा यह राज सुमेरु को सदा लोभी है इंद्रको जीति सुमेरुपर राज्य करिवे की इच्छा राखत है और राजराज दिक्सदृश जे वाम स्त्री हैं राजराज दिक् सदृश कहे या जनायो जैसे द्रव्यरूप लक्ष्मी सों युक्त उत्तरदिशा है तैसे शोभारूप लक्ष्मी सों युक्त स्त्री है तिनके भाल को जो लालरत्न है शोभा है सदा जा तिलकको अर्थ जो तिलक लालहकी शोभा बढ़ावत है तासों तिलक के नि- कट रहिवेकी भाल लालके इच्छा रहति है आशय यह कि अतिमानों भूषित औ अतिसुन्दरीहू खिन कै शोभा बढ़ावत है साधारण नहीं है औ अर्थ राजराज कहे राजन को राजा है और दिशारूपी जो वाम स्त्री है ताके | भाल को लाल है औ लोभी है सदा कहे याचकनकी याचकताको याचकन को याचियो सर्वदा जाको भावत है अर्थ बड़ो दाता है सदा पर सो मैं याचकता की कहतहौं और अर्थ राजदिक जो उत्तरदिशा है ताके वामभाग जो पूर्वदिशा है ताके भालको लाल सूर्य ताको सदा लोभी ऐसा जो काशमीर देश है ताको राजा है अति जाड़े सों जा देशवासिन के सदा सूर्योदय की इच्छा रहति है २२॥ सुमति-दोहा॥ निजप्रताप दिनचर करत लोचन कमल प्रकास ॥ पान खात मुसुकात मृदु को यह केशवदास २३ ॥ अर्थ यह जाके अंगन में प्रताप कांति की झलक सव लोचन पसारिकै निहारत हैं २३॥ विमति-सोरठा ॥ नृप माणिक्य सुदेश दक्षिणतिय जिय भावतो॥ कटितटसुपटसुवेश कलकांची शुभ मंडई २४ ॥
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।