पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । ३२३ गौतमतिय अतिप्रज्ञ ॥ सीताको छोड़न कहौ कैसे के सर्वज्ञ ४० शत्रुघ्न-रूपमालाछंद ॥ स्वाहूं नहिं छोड़िये तिय गुर्विणी पल दोइ । छोड़ियो तब शुद्धसीतहिं गर्भमो- चन होइ ॥ पुत्र होइ कि पुत्रिका यह बात जानि न जाइ । लोक लोकनमें अलोक न लीजिये रघुराइ ४१ दोहा ॥ रामचन्द्र जगचन्द्र तुम फल दल फूल समेत ।। सीता या वन पद्मिनी न्याय नहीं दुख देत ४२ ॥ फेरि कहे पलटिकै ३७ जैन नास्तिक ३८ ग्यारसि एकादशी वामी वाममार्गी ३६ । ४० अलोक निंदा ४१ ॥४२॥ घरघरप्रति सब जग सुखी राम तुम्हारे राज॥अपने ही घर करत कत शोक अशोकसमाज ४३ राम-तोटकछंद ।। तुम बालकही बहुधा सबमें । प्रतिउत्तर देहु न फेरि हमें ॥ जो कहैं हम बात सो जाइ करो। मनमध्य न और विचार धरो ४४ दोहा ।और होइ तो जानिजै प्रभुसों कहा वसाइ॥ यह विचारिक शत्रुहा भरत उठे अकुलाइ ४५ राम-दोधक छंद ॥ सीतहि लै अब सत्वर जैये।राखिमहावनमें पुनिएये।। लक्ष्मण जो फिरि उत्तर देहो।शासनभंगको पातक पहौ४६ लक्ष्मणले वन सीतहिं धाये । स्थावर जंगमहूं दुख पाये॥ गंगहि देखिको यह सीता। श्रीरघुनायककी जनुगीता७|| अशोक जो आनंद है ताके समाज कहे समूह में ४३ १.४३ जानि अर्थ दोष प्रदोष को निर्णय समुझिये ४५ शासन आज्ञा राजाको आज्ञा- भंग वधके सम होता है यथा माधवानलनाटके " आज्ञाभङ्गो नरेन्द्राणां विप्राणां मानखण्डनम् । पृथक्शय्यावरस्त्रीणामशस्त्रवध उच्यते ॥ ४६ सीताको लैकै लक्ष्मण वनहूं को गये तहां पर्यंत कहूं कौशल्या वशिष्ठादि. के वचन नहीं हैं सो ऋष्यशृंगऋषि के यज्ञ रह्यो तहां कौशल्यादि माता