पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३१४

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रामचन्द्रिका सटीक । केशनि भोरनि सीकर में । ऋक्षनकोतमयी जनु बमें ॥ सज्जल अंबर छोड़त बने । छूटतहैं जलके कण घने ॥ भोग भले तिनसों मिलि करे। बिछुरत जानि ते रोवत खरे ४१ भूषण जे जलमध्यहि रहे । ते वनपाल वधूटिन लहे॥ भूषण वस्त्र जबै सजिलये । चारिहु द्वारन दुंदुभि भये ४२ दोहा ॥ गंगे कुब्जे बावरे बहिरे वामन वृद्ध ।। यान लये जन आइगे खोरे खंज प्रसिद्ध ४३ चौपाई॥सुखद सुखासन बहुपालकी। फीरकबाहिनि सुखचालकी ॥ एकन जोते हय सोहिये। वृषभ कुरंग अंग मोहिये ।तिन चदि राज लोक सब चल्यो। नगर निकट शोभाफल फल्यो ४४ ॥ हासरसलतासम मोतिनकी लरें हैं श्रृंगाररसलतासम लौ हैं कल्पलता सम स्त्री हैं ४० केशन के ओरन कहे अन्तमें सीकर जे अंधुकण हैं ते रमैं | कहे शोभित हैं ऋक्ष नक्षत्र ४१ वाटिका के चारिह द्वारन में कूच के नगारे भये इत्यर्थः ४२ स्त्री जनके निकट ऐसेही जन चाहिये जिनौ स्त्रीजन प्रीति न करें ४३ मुखासन कहे कोमल विछावने युक्त फिरकबाहिनी सेजगाड़ी एकन फिरकबाहिनीन में जोते हैं शोभित हैं एकन में वृषभ शोभित हैं ते आपने अंगनकरि कुरंग अंगनको मोहत हैं अर्थ प्रतिचंचल हैं ४४ ॥ मणिमय कनकजालिका घनी। मोतिनकी झालरि प्रति बनी॥घंटा बाजत चहुँदिशि भले। रामचन्द्र त्यहिंगज चढ़ि चले ॥ चपला चमकत चारु अगूढ़ । मन हुँ मेघ मघवा श्रा- रूढ़ ४५ आसपास नरदेव अपार । पाँइ पियादे राजकुमार॥ बंदीजन यश पढ़त अपार। यहि विधि गये राजदरबार ४६ विजयाछंद ॥ भूषित देह विभूति दिगंबर नाहि.न अंबर अंगनवीने।दूरिकै सुंदर सुंदरि केशव दौरि दरीन में श्रासन कीने ॥ देखिये मंडित दंडन सों भुजदंड दुवौ असिदंड