रामचन्द्रिका सटीक । कमलकी जर है ताके वलय समूह युक्त है औ विरही शीतलताके लिये अनेक कमल जर धारण करे हैं हरिके उदरहू में चौदही लोक घसत हैं तड़ाग पारमादि सों बांध्यो है बलिको वामन बांध्यो है ३४॥ चौपाई ॥ विषमय यह सब सुखको धाम । शंबररूप बढ़ावै काम ॥ कमलन मध्य भ्रमर सुखदेत । संतहृदय जनु हरिहि समेत ३५ वीच वीच सोहें जलजात । तिनते अलि कुल उड़ि उड़ि जात ॥ संतहियनसों मानहुँ भाजि । चंचल चली अशुभकी राजि ३६ दंडक ॥ एक दमयंती ऐसी हरै हँसि हंसवंस एक हंसिनीसी विशहार हिये रोहिये । भूषण गिरत एकै लेती बूड़ि बूड़ि बीच मीनगति लीन हीन उपमान टोहिये॥एक पतिकंठ लागि लागि बूड़ि बूड़िजाति जल देवतासी दृगदेवता विमोहिये । केशोदास आसपास
- वर भंवत जल केलिमें जलजमुखी जलजसी सोहिये ३७
दोहा । क्रीडासरवरमें नृपति कीन्ही बहुविधि केलि ॥ निकसे तरुणि समेत जनु सूरज किरणि सकेलि ३८ हाक- लिकाछंद ॥ नीरनिते निकसीं तिय सबै । सोहतिहें बिन भूषण तबै ॥ चंदन चित्र कपोलन महीं । पंकज केशर शोभत तही ३६॥ दैचरणमें विरोधाभास है विषजल शंबररूप कहे शंवर जो मत्स्यभेद है तन्मय है अर्थ अति शंबर मत्स्ययुक्त है "शम्बरो दैत्यहरिणमत्स्यशैलाजिना- न्तरे इति मेदिनी" ३५ । ३६ ह कहे गहि लेती हैं दमयंती हू राजा नल को पठायो जो हंस है ताको गहिलियो है हंसह पवनारी को काढ़ि गरे में डारि लेत है ३७ । ३८ ताही अर्थ कपोलन में लगे कमलन के केशर किंजल्क सोहत हैं ३६ ॥ मोतिनकी विथुरी शुभ छ । हैं उरझी उरजातन लटें। हास शृंगार लता मनु बनी। भेंटति कल्पलता हित घनी ४०