रामचन्द्रिका सटीक । राजपुरोहितादि सुहृदो मंत्री महामंत्रदा । नानादेश समा- गता नृपगणा पूज्या परा सर्वदा १४ ॥ जनकपुरको ब्राह्मण सीयस्वयंवर के अर्थ काहू राजाको निमंत्रण लिये जादरह्यो सो यज्ञको स्थान देखिबेको स्वभावही पायरो अथवा ऋषिहीको निमंत्रण ल्यायो है अथवा कोऊ साधारण पथिक ब्राह्मण है ताको निकट योनि कहे वोलाइ कै विश्वामित्र भांतिभांति विशेषसों जनकपुरकी कथा पूं- छस है सो प्रालण ऋषि के संग राम लक्ष्मणको देखि ऋषिकी स्त्रीके वचन सत्य जानि अब सीताको व्याइ हेहै यह निश्चयकरि हर्षित आनन्दित होतहै काहेते पंचम प्रकाश वृतीय छन्दमें ब्राह्मण कहिहै कि काहू ऋषिकी स्त्रा चित्र में सीजका ऐसो कोऊ दरु लिखि सुहाई जैसो रामचन्द्रको देखियत है १३ सीताको जो शोभन कहे सुन्दर ब्याइहै और जोउत्सवसमा कहे कौतुकसभा है स्वयंवरसभा इति ताके जे अनेक संभार सामग्री हैं अनेक राजसत्कारादि वस्तु निनकी जो संभावना विचार है तासों राजा जनक औ राजपुरोहित शतानंद तिन्हैं आदिदै और जे सुहृद् मित्र औ महामंत्रके देनहार जे मंत्री हैं औ समग्र कहे संपूर्ण मिथिलागी जे शोभन कहे सुबुद्धिजन हैं ते सब तत्त- कार्य कहे अापने अपने उचितकार्य में व्यग्र कहे,पासक्तहैं संलग्न इति अथवा आकुल हैं " रोच्यासल पाकुले इति मेदिनी।" श्रौ सर्वदा पूज्य श्री पर कहे उत्कृष्ट ऐने नानादेश अनेकदेशके नृपाण समागत कहे आये हैं १४ ॥ दोहा॥ खंडपरेको शोभिजै सभामध्य कोदंड॥ मानहुँ शेष अशेषधर धरनहार बरिखंड १५.सवैया ॥शोभित मंचनकी अवली गजदंतमयी छवि उज्ज्वल छाई । ईश मनो वसुधा में सुधारि सुधाधरमंडल मंडि जुन्हाई ॥ तामहँ केशवदास विराजत राजकुमार सबै सुखदाई । देवनसों जनु देवसभा शुभ सीयस्वयंवर देखन आई १६ दोहा ।। नवति मंच पंचा- लिका कर संकलित अपार ॥ नाचति है जनु नृपतिकी चित्तवृत्ति सुकुमार १७ सोरठा । सभामध्य गुणत्राम वंदी- सुत द्वै शोभहीं । सुमति विमति यह नाम राजनको वर्णन
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