पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३०७

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रामचन्द्रिका सटीक । दाँसी की उपमा एकको एककी एकको रचि राख्यो है औ उपमा इनके सादृश्य नहीं है इत्यर्थः ३६ ॥ इति श्रीमजगज्जननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद. निर्मितायांरामभलिनकाशिकायामेरुत्रिंशः प्रकाशः ३१ ॥ दोहा ॥ बत्तीसवें प्रकाशमें उपवनवर्णन जानि । अरु बहु विधि जलकलिको करेहु राम सुखदानि १ सुंदरीछंद । अचानक दृष्टिपरे रघुनायक । जानकिके जियके सुखदा- यक ॥ ऐसे चले सबके चल लोचन । पंकज वात मनोमन रोचन २ रामसों रामप्रिया कह्यो यों हँसि । बाग देखावहु लोकनके शसि ॥ राम विलोकत बाग अनंतहि । ज्यों अव- लोकत कामद संतहि ३ बोलत मोर तहां सुखसंयुत । ज्यों बिरदावलि भाटनके सुत ॥ कोमल कोकिल के कुल बोलत । ज्ञानकपाट कुंजी जनु खोलत ४ फूल तजै बहु वृक्षन को गनु । छोड़त आनँद बांसुनको जनु ॥ दाडिमकी कलिका मन मोहति । हेमकुपी जनु बंदन सोहति ५ दोहा ॥ मधुवन फूल्यो देखि शुक वर्णत हैं निश्शंक ॥ सोहत हाटक घटित ऋतु युवतिनके ताटंक ६ दोधकछंद ॥ चेलके फूल लसैं अति फूले । भौंर भवें तिनके रसभूले । यों करवीर करी वन राजै । मन्मथवाणनकी गति साजै ७ केतकपुंज प्रफुल्लित सोहैं। भौंर उड़ें तिनमें अतिमोहें॥ श्रीरघुनाथहिं श्रावत भागे। जे अपलोकहुते अनुरागे ८ दोहा ॥ श्याम शोण युति फूलकी फूले बहुत पलास । जरै कामकैला मनो मधु ऋतु वातविलास ॥ १ रामचन्द्र भूपरूप दुरायकै ये छपे जो युवतिनको देखत रहे सो उपवन की छवि निरखत अचानक सीतादिकनकी दृष्टिमों परे सो रामचन्द्रकी ओर