पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३०६

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रामचन्द्रिका सटीक । छवा कहे ऍड़ी तिनकी शुभ्र कहे मलरहित साधु कहे श्रेष्ठ माधुरी कहे | सुंदरता नयननकरि छुई नहीं जाति अर्थ अतीन्द्रिय है अतिसुंदरता है इति भावार्थः जिनको विलोकिकै चित्तकी जो आतुरी शीघ्र चालि कहे चालु है सो भूलिजान है अर्थ चित्त अचल हैजात है पाद औ अंगुली औ नखावली चित्र विचित्र अलन कहे महावरसों युक्त हैं ते मानो मित्र को कहे मित्र जो स्वामी है ताके मनकी बैठकी हैं इत्यर्थः अथवा मित्र कहे सूर्य कि सूर्यसम नखहैं ३२ जानो मानिककी तनत्राण के अर्थ पहिरे हैं | इत्यर्थः ३३ । ३४ भूषण सुवर्णमय कहे कंचनमयी है औ मंत्र पक्ष सुष्टुवर्ण- मय अक्षरमय जानौ ३५ । ३६ ॥ रूपमालाचंद ।। भालमें भव राखियो शशि की कलाभुत एक । तोषता उपजावहीं मृदु हास चंदं अनेक ॥ मार एक विलोकिकै हर जारिके कियो क्षार । नयन कोर चित करें पति चित्त मार अपार ३७ चौपाई ॥ कंटक अटकत फटि कटि जात । उड़ि उड़ि बसन जात वशवात ॥ तऊन तिनके तन लखि परे।मणिगण अंग अंग प्रति धरे ३८ दोहा॥ उपमा गण उपजाइ हरि बगराये संसार ॥ तिनको परस- परोपमा रचि राखी करतार ३६ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांसीतासखीजन- वर्णनन्नामेकत्रिंशः प्रकाशः ३१॥ तोपता कहे संतोप के लिये इत्यर्थः नतिवादी सों अधिक को करिये | तब संतोष होत है यह प्रसिद्ध है औ महादेव एक मार जारयो तालिये नयनकोरसों चित पतिनके चित्तमें अपार मार कहे काम उत्पन्न करती हैं अथवा महादेव कामको एकई मार करयो कि जारिही डारयो ौ ये काम सरिस जे पति हैं तिनके चित्त मों अपार कहे अनेक विधिको मार ताड़न करती हैं ३७ । ३८ हे हरि ! कर्ता और उपमागण उपजाइकै सं. सार में बगरायो फैलाया है औ तिन दासिन को परस्पर उपमा कहे एक