पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३००

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रामचन्द्रिका सटीक । वेणीपान हैं तिनकी पांति है सो मानों शृंगारलोक के जान कहे जाइवे को सोपान कहे सीढ़ी है शृंगाररस के लोकसम केशपाशयुक्त शीश हैं ७ ॥ शीशफूल अरु वेंदा लसै। भाग सोहाग मनों शिर वसै॥ पाटिन चमक चित्तचौंधिनी । मानों दमकति घनदामिनी ८ सेंदुरमांगभरी अतिभली। तिनपर मोतिनकी अवली॥ गंग गिरा तनसों तन जोरि । निकसी जनु यमुनाजल फोरि . शीशफूल शुभ जखो जराय।मांगफूल शोभै शुभ भाय। वेणी फूलनकी वरमाल । भाल भले बेंदायुत लाल ॥ तमनगरीपर तेजनिधान । बैठे मनों बारहौ भान १० भृकुटि कुटिल बहुभा- यन भरी। भाल लालद्युति दीसति खरी ॥ मृगमदतिलक रेखयुग बनी । तिनकी शोभा शोभति घनी ॥ जनु यमुना खेलति शुभगाथ । परसन पितहि पसाखो हाथ ११ ॥ बेंदा भाल में रहतहै सो भाग कहे भाग्यसम है शीशफूल सोहागसम है इहां स्थानमें बसियेकी उत्प्रेक्षा है तासों क्रमहीन दूषण नहीं है । तम नगरीसम शीशके वार हैं कारहौ भानुसम शीशफूलादि हैं इहां संख्या करि उत्प्रेक्षा नहीं है बाहुन्यकी उत्प्रेक्षा है १० यमुनासम भृकुटी हैं हाथ सम कस्तूरी के तिलककी द्वै ऊर्ध्वरेखा हैं पिता ने सूर्य हैं तिनके सम भाललाल है भृकुटिन को बहुभायन भरी कह्या है त.सों यमुना को खेलत कह्यो ११ ॥ पंकजवाटिकाछंद ॥ लोचन मनहुँ मनोभव मंत्रनि ।भ्रू. युग उपर मनोहर मंत्रनि ॥ सुंदर सुखद सो अंजनअंजित । बाण मदन विषसों जनु रंजित १२ चौपाई॥सुखद नासिका जग मोहियो । मुक्ताफलनि युक्त सोहियो ॥ आनँदलतिका मनहुँ सफूल । सूधि तजत शशि सकल कुशूल १३ पद्धटिका छंद ॥ जनु भालतिलक रविव्रतहि लीन । नृपरूप अकाशहि दीप दीन ॥ ताटक जटित मणि श्रुतिवसंत।रवि एकचक्र-