रामचन्द्रिका सटीक । औ फेरि अतिपापिनी कवि जे शुक्र हैं तिनकी माला भई ताको नाराज मात्यो है एकसमय देवन के युद्ध में हारिक दैत्य को शरण में बचियो जानिकै शुक्रमाताके शरण जाइ लुकाने तहां शत्रुको रस जानि इंद्रकी प्राज्ञा सों विष्णु शुक्रमानामा शिर चक्रसों खंडन करि दैत्यनको मात्यो है ताही | कोपसों भृगुमुनि जाइ विष्णु के उरमें लात माखोहै और आपने पुत्र शुक्रको दैत्यगुरु कियो है यह कथा पुराणदमें प्रसिद्ध है कैसे हैं नातास विडियो दाता हैं अथवा चिंतामलि सरिस दाता हैं सकल द्विजदूषणसंयुक्त नाका को विशेषण है औ सहसुन कहे मारीच सहित यासों या जनायो कि इंद्र विष्णुहूं दुष्ट स्त्री वध कियो है॥ दोहा ॥ दिजोपी न विचारिये कहा पुरुष कह नारि॥ राम विराम न कीजिये वामतड़का तारि १० मरहट्टाछंद ।। यह सुनि गुरुबानी धनुगुनतानी जानी द्विजदुखदानि ता- डका सँहारी दारुणभारी नारी अतिबल जानि ॥ मारीव विडाखो जलधि उताखो मान्यो सबल सुबाहु । देवनिगुण पर्यो पुष्पनि वयों हष्यों अति सुरनाहु ११ दोहा । पूरण यज्ञ भयो जहीं जान्यो विश्वामित्र ॥ धनुषयज्ञकी शुभकथा लागे सुनन विचित्र १२॥ विराम कहे वेर १० ताड़कादि वसों गुणनकी परीक्षा कियो कि ये गुण विष्णुही में हैं तासों विष्णुको अदतार भयो अब रावसवय बैं यह जानि इंद्र हर्षित भये ११ । १२ ॥ चंचरीछंद ॥ पाइयो तेहि काल ब्राह्मण यज्ञको धल देखिकै ।ताहि पूंछत बोलिकै ऋषि भांति भांति विशेखिकै।। संग सुंदर राम लक्ष्मण देखि देखि सो हर्षई । बैठिकै सोड राजमंडल वर्णई सुख वर्पई १३ ब्राह्मण-शार्दूलविक्रीड़ित छंद । सीता शोभन ब्याह उत्सव सभा संभारसंभावना। तत्तकार्यसमग्रव्या मिथिलावासी जना शोभना ॥राजा
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