( २ ) दोहा । तापरिपाक अघाय मन चंचलतानि विहाइ॥रामचन्द्रिका को तिलक लाग्यो करन बनाइ ८ कठिनाई तम ग्रन्थगृह पलथल विविध विहारु॥ तिलक दीप विनु अबुध क्यों लखें पदारथ चारु ६ तासों सुमति विचारि चित कीन्हें तिलक अपार ॥ देखि रीति तिनकी कस्यो हौं निनमति अनुसार १९घना- क्षरी॥मेदिनी अमर अभिधान चिन्तामनि गनि हारावली आदिकोसमत उर भरिकै । बालमीकि आदि कविताकी मतिभीनोंदीनों ज्योतिष प्रमाण कहूं जगुति निहारिकै । ग्रन्थ गुरुताके भय सकल न लीन्हों कीन्हों परथ उ- कुति पद कठिन ठिहारिकै । रामचन्द्रजूके चरणनि चित राखि रामचन्द्र चन्द्रिकाको कीन्हों तिलक विचारिकै ११ चंचलाछन्द ॥ नैन सूरज वाजि सिद्धि निशीश संवत् चारु । शुक्र संयुत शुक्लपक्ष सुरेशपूजित बारु ॥ चारु दितिथि हस्ततार वरिष्ठयोग नवीन । रामभक्तिमकाशिका अवतार तादिन कीन १२ सोरठा ॥ रावणादि मति हीन राम सीय प्रति कटुवचन ॥ तहां अर्थ मृदु कीन जानि प्रभाव सरस्वती १३ दोहा ॥ शब्द लग्यो संवन्धमें रह्यो छन्द में शेष ॥ ताहि मिलायो आनिकै यों कहुँ कथा विशेष १४ कहुँ पूरब पर कथनको लख्यो विरोध विचारि ॥ तहां निवारणको कियो निज मितिकी अनुहारि १५ जहां केर पर्यायपद अर्थ बोध नहिं होहि ॥ तहां वासु इति अन्त दै लिख्यो दूसरो जोहि १६ तहां विरोधाभास है अर्थ वि- रोष प्रकाश ॥ लिख्यो अर्थ अविरोधही तासों सहित हुलास १७ कठिन शन्दको अर्थ जहँ एकठौर नहिं देखि ॥ तहां दसरे और में जानब लिख्यो विशेखि १८ ।। इति ॥
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