३०२ रामचन्द्रिका सटीक । है ताके अंशु कहे कण चलत में लगिगये हैं ते मानों उदार कहे चतुर चिच हैं चरणन में लगिकै चंचलापकार कहे चंचलता को प्रकार सीखि लेतहै जिनके चरणन में चित्तहू सों अधिक चंचलता है इति भावार्थः २ | वनमें पायो मित्र जो वसंत है ताको नाम सुनिकै मानों चित्तपर चढ़िक धाम छोडि काम वनको चल्यो है इत्यर्थः चित्तसम चंचल वाजि है काम सम सुंदर राम हैं ३ भूपरूप छत्र चामरादिको दुराइ छपे छपे युवतिनको विलोक्यो जाइ ४॥ स्वागताचंद ।। रामसंग शुक एक प्रबीनो। सीयदासि- गुणवर्णन कीनो ॥ केशपाश शुभ श्याम सनेही । दास होत प्रभु जीव विदेही ५ भांति भांति कबरी शुभ देखी । रूप भूपतरवारि विशेखी ॥ पीयप्रेम प्रण राखनहारी । दीह दुष्ट छलखंडनकारी ६ किधों शृंगारसरित सुखकारि। वंचक- तानिबहावनिहारि ॥कंचनपत्र पांति सोपान । मनों शृंगार लोकके जान ७॥ स्नेही स्नेह तैलयुक्त प्रभु रामचन्द्रको संबोधन है विदेही कहे ज्ञानी जे जनकादिसम देह धरे हैं अथवा जिनको देखि जीव उदास होत हैं औ विदही होत हैं अर्थ देहकी सुधि भूलिमानि है ५ कबरी वेणी " कवरी केशविन्यासशाकयोरिति हेमचन्द्रः" अनेकदासी हैं तासों भांति भांति पद कह्यो काहू दासीकी वेणी और विधि है काहूकी और विधि है काहू की और विधि है कैसी है कबरीरूप कहे सौंदर्यरूपी जो भूप राजा है ताकी विशेष निश्चय तरवारि है कैसी है तरवारि पीय जो स्वामीरूप है ताके प्रेमकी राखनहारी है अर्थ अति प्रेमसों सौंदर्य जिनको एकहु क्षण त्याग नहीं करत औ सबके मन को वश्य करिवो यह जो रूप भूपको प्रण | है ताहूकी राखनहारी है सबके मनको वश्य करति है औ दीह दुष्टसम जो छल है ताकी खंडनकारी है अर्थ जैसे तरवारि दुष्ट जे विरोधी हैं तिन्हैं खंडन करि प्रजानको राजा के वश्यकरि प्रण राखति है तैसे छलको खंडन करि सबके मनको रूपके वश्य करि प्रण राखती है ६ और नदी वृक्षादि बहावति है तैसे यह चंचलता छलताकी बहावनहारी है कंचनपत्र जे
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२९९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।