रामचन्द्रिका सटीक । राम ॥ धरणिधसे सीतासहित रतिसमेत जनुकाम ४८ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायांवसन्तदर्शनन्नाम त्रिंशत्प्रकाशः॥३०॥ वनको देखत वसंत ऋतु आई जानिकै वनविहार करिवो मन में निश्चय करि सीतासहित गृह अग्र सों धरणि को धसे कहे उतरे ४८॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायांरामभक्लिप्रकाशिकायां त्रिंशत्प्रकाशः ॥३०॥ दोहा ॥ इकतीसवें प्रकाशमें रघुवर बाग पयान ॥ शुक मुख सियदासीनको वर्णन विविधविधान १ ब्रह्मरूपक छंद ॥ भोर होतही गयो सो राजलोक मध्य बाग। वाजि आनियो सुएक इंगितज्ञ सानुराग ॥ शुभ्र शुद्ध चारिहून अंशु रेणु के उदार । सीखि सीखि लेत, ते चित्त चंचलाप्र- कार २ तोमरछंद ॥ चढ़ि वाजि ऊपर राम । वनको चले तजि धाम ॥ चढ़ि चित्त ऊपर काम । जनु मित्रको सुनि नाम ३ मगमें विलम्ब न कीन । वनराजमध्य प्रवीन ॥ सब भूप रूप दुराइ । युवती विलोकी जाइ ४॥ १ वनविहार के अर्थ भोर होतही राजलोक कहे रनिवास प्रथम बाग के मध्य गयो फेरि इंगितज्ञ कहे सवारकी चेष्टा को जाननहार अर्थ जैसे स- वार को मन देखै ताहीविधि ताड़न विनही गमनकर्ता सानुराग कहे अपने अनुराग प्रेमसहित अर्थ जाके ऊपर आपनो बड़ो प्रेम है ऐसो वानि रामचन्द्र आनियो कहे मँगायो अथवा वन जाइवे के अनुराग सहित जे रामचन्द्र हैं तिन इंगितज्ञ वाजि आनियो अथवा इंगित को जाननहार जो कोऊ अनु- चर है सो रामचन्द्र को वाजिपर चदिकै बाग जायबेको इंगित जानिक सानुराग कहे प्रेम सहित वानि आनियो लायो कैसो है वाजि जाके शुभ्र कहे सुंदर औ शुद्ध कहे निर्दोष चारिहू चरण में इति शेषः रेणु जो धूरि
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