२६६ रामचन्द्रिका सटीका फेन किधौं नभसिंधु लसै । देवनदीजल हंस बसै ४५ दोहा॥ चारु चन्द्रिकासिंधुमें शीतल स्वच्छ सतेज ॥ मनो शेषमय शोभिजै हरिणाधिष्ठित सेज ४६॥ शशि जो चन्द्र है सो श्रीरति जो कामकी स्त्री है ताको दर्पण सो है ४३ तारा नक्षत्र औबालिका स्त्री मनोभव कामवियोगी स्त्री पनि परस्पर वियोगी औ विरोधी छंद उपजाति है ४४ या प्रकार सीताको वर्णन सुनिकै रामचन्द्र कहो नभसिंधु आकाशगंगा ४५ हरिणाधिष्टितहै तासों चारुचंद्रिकारूपी जो सिंधु कहे क्षीरसिंधु है तामें शीतल औ स्वच्छ मलरहित सनेज कहे कांतियुक्त | मानों शेषमय कई शेषस्वरूप सेज है शेषमय सेज हरि विष्णु करसन्ते अधि- ष्ठित युक्त है हरिणा तृतीयांत पद है चन्द्रमा हरिण करिकै अधिष्ठित है मृग अंकमें प्रसिद्ध है ४६ ॥ दंडक || केशोदास है उदास कमला करसों कर शोषक प्रदोष ताप तमोगुण तारिये । अमृत अरोपके विशेष भाव वर्षत कोकनदमोदचंडखंडन विचारिये ॥ परम पुरुष पदविमुख परुषरुख सुमुख सुखद विदुषन उरधारिये । हरि हैरी हियों न हरिण हरिणनैनी चन्द्रमा न चन्द्रमुखी नारद निहारिये ४७॥ सीतासों रामचन्द्र कहतहैं कि हे हरिणनयनी ! यह चन्द्रमा नहीं है नारद हैं औ याके हियमें यह हरिण नहीं है हरि विष्णु हैं सो अश्लेपसों कहत हैं कैसा है चन्द्रमा कमलनको जो पाकर समूह है तासों उदास है कर किरण जाके चन्द्रकिरण स्पर्शसों कमल संकुचित होत है औ प्रदोष जोरजनी- मुख है औ ताण जो उष्ण है औ तमोगुण जो अंधकार है तिनको शोषक दूरि करणहार है यह तारिये कहे जानियत है पूर्णिमाको चन्द्र जब उदित भयो तब रात्रि को प्रवेश होत है रजनीनुख काल व्यतीत होत है तासों शोष कह्यो " प्रदोषो रजनीमुखमित्यमरः" औ अशेप कहे पूर्ण जो अमृत है ताके जे भाव कहे विभूति हैं वृद्धि इति ताको विशेष सों वर्षत है अमृतकी बड़ी वर्षा करत है इत्यर्थः नौ कोक जे चक्रवाक हैं तिनको जो
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