२१८ रामचन्द्रिका सटीक । शूल ३६ किधों वन जीवनको मधुमास । रचे जग लोचन भौर विलास ॥ किधौं मधुको सुख देत अनंग । घरेउ मन मीननि कारण अंग ४० किधौं रतिकी रति वेलिनिकुंज । बसै गुण पशिनको जहँ पुंज ॥ किधौं सरसीरुह ऊपर हंस । किधौं उदयाचल ऊपर हंस ४१ दोहा ॥ प्राची दिशि ताही समय प्रकट भयो निशिनाथ ॥ वर्णत ताहि विलोकिकै सीता सीतानाथ ४२॥ नागरलोग कहे नग श्रेष्ठ जो नर हैं ते रामचन्द्रको बैठे देखि परस्पर वर्णत हैं मूल के भक्षणसों शूल दूरिहोत है औ रामरूपी जो आनंदमूल है ताके देखतही शूल दूरिहोत है ३६ की वनरूपी जे जीव प्राणी हैं तिनको मधुमास चैत्रमास है जैसे चैत्र वनको फुलावनको फुलावत है तैसे रामचन्द्र जगत् के प्राणिनको प्रफुल्लिंत करत हैं औ मधुमास में भ्रमर अनुरागत हैं इहां जगके लोचन भ्रमर के विलासों रचे कहे अनुरागे हैं औ कि रामचन्द्र नहीं हैं अनंग काम हैं वनमें विराजमान जो मधु संत ताको दरश दैक सुखदेत है कैसो है अनंग सबके मनरूपी जे मीन मत्स्य हैं तिनके कारण कहे गहिवेके अर्थ अंगनको धारण करयो है देखतही रामचन्द्र सब के मनको गहिराखत हैं तासों जानों ४० रति प्रीति औ कीर्ति यशरूपी जो वेलि है तिनको निकुंज है कुंज में पक्षी बसत हैं रामचन्द्र में गुणरूपी जे. पक्षी हैं तिनके पुंज समूह बसत हैं " निकुञ्जकुञ्जौ वा क्लीवे लतादि- पिहितोदरे इत्यमरः" सरसीरुह औ उदयाचल सम गृह है हंस पक्षी श्री हंस सूर्यसम रामचन्द्र हैं ४१ प्राची पूर्व ४२ ॥ हरिणीचंद ॥ फूलनकी शुभ गेंद नई । संधि शची जनु डारिदई ॥ दर्पणसों शशि श्रीरतिको । प्रासन काम मही. पतिको ४३ मोतिनको श्रुति भूषण भनो। भूलिगई रविकी तिय मनो। अंगदको पितुसों सुनिये । सोहत तारहिं संग लिये ॥ भूप मनोभव छत्र धरेउ । लोक वियोगिन को बिड- रेउ ४४ देवनदी जल राम कह्यो। मानहुँ फूलि सरोज रह्यो।
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