पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२९४

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रामचन्द्रिका सटीक । हैं।शोभन सनौढियन रामचन्द्र दिनप्रति गोशतमहल देकै भोजन करत हैं २६ तोटकछंद ॥ तहँ भोजन श्रीरघुनाथ करें। पटरीति मिठाइन चित्त हरें ॥ पुनि खीरसों चौविधि भात बन्यो । तकि तीनि प्रकारनिशोभ सन्यो ३० षटभांति |पहीति बनाइ सची। पुनि पांचसो व्यंजन रीतिरची.॥ विधि पांच सो रोटिन मांगत हैं । विधिपांच बरा अनुरागत हैं ३१॥ २६ चौविधि को अन्वय दूनों ओर है अर्थ चारि विधिकी खीर बनी है औ चारिविधिको भात बन्यो है ३० सची कहे संचित करयो अर्थ कत्र कस्यो ३१॥ विधिपांच अथान वनाइ कियो। पुनि दै विधि क्षीरसो मांगि लियो॥ पुनि झारिसो दै विधि स्वाद घने। विधि दोइ पछ्यावरि सातपने ३२ दोहा ॥ पांचभांति ज्योनार सब षटरस रुचिर प्रकास ॥ भोजन करि रघुनाथजू वोले केशव दास ३३ हरिलीलाछंद ॥बैठे विशुद्ध गृह अग्रज अग्रजाइ । देखी वसंतऋतु सुंदर मोददाइ ॥ बौरे रसालकुल कोयल कलिकाल । मानों अनंग ध्वज राजत श्रीविशाल ३४॥ अथान अचार झारि आम्र के चूर्ण में जीरजकादि डारि जल में घोरि वनति है पश्चिममों प्रसिद्ध है पछ्यावरि शिखरनि को भेददै कहूं मूरनि कहत हैं या सब प्रकार भोजन के मिलाइ छप्पन होत हैं ३२ शर्करादि | मधुर १ आम्रादि अम्ल २ करैला आदि तिक्त ३ मरिचादि कटु ४ लव- णादि लवण ५ हर्रादि कषाय ६ ये जे षट् छः रस हैं तिनकी है रुचिर प्रकाश जामें ऐसी जो चूष्य आम्रादि १ पेय दुग्धादि २ भोज्य भक्कादि ३ लह्य अवलेहादि ४ चय॑ पिस्ता बदामादि ५ पांचभांति की जेवनार है ताको भोजन करिकै रामचन्द्र बोले भोजन समयमों बोल्यो न चाहिये यह धर्मशास्त्रोक्त है ३३ रामचन्द्रजू भोजन करिकै गृहअग्रज कहे गृह में अग्रज श्रेष्ठ जो गृह घर है ताके अग्रभागमों वसंत बहार देखि को जाइकै बैठत भये कोमल कहे सुगंधयुक्त रसाल आम्रवृक्ष बोरे हैं सो मानों यह केलिको