२६५ रामचन्द्रिका सटीक । औ और जे अनेक याचक हैं ते अपने गुणगण रचत हैं छंद उप- जाति है २१ । २२। २३ । २४ ॥ दोहा॥ जागत, श्रीरघुनाथके बाजे एकहिं बार ॥ नि- गर नगारे नगरके केशव पाठहुद्वार २५ मरहट्टाछंद ॥ दिन दुष्टनिकंदन श्रीरघुनंदन आँगन आये जानि।आईं नवनारी सुभग,गारी कंचनझारी पानि ॥ दात्योनि करत हैं मनन गहत हैं औरिबोरि धनसार । सजि सजि विधिमूकनि प्रति गंडूषनि डारत गहत अपार २६ दोहा॥ संध्या करि रवि- |पाय परि बाहर आये राम ॥ गणक चिकित्सक आशिषा बंधुन किये प्रणाम २७ मरहट्टाछंद ॥ सुनि शत्रु मित्रकी नृपचरित्रकी रय्यति रावत बात । सुनि याचकजनके पशु पक्षिनके गुणगण अति अवदात || शुभ तन मजन करि स्नान दानकरि पूजे पूरणदेव । मिलि मित्र सहोदर बंधु शुभोदर कीन्हे भोजनभेव २८ ॥ निगर कहे मौन विधिको सजिकै भतिगंडूपनि कहे प्रतिकुल्लन को डा- रत हैं.औ गहत हैं असार अनेक अथवा प्रतिगंडूषनि कहे कुल्लाकुल्ला प्रति अर्थ हरि कुल्ला मूकनि कहे कुल्लाके त्यागन की विधिको सनिकै डारत हैं त्यागत हैं फेरि और गहत हैं २५ । २६ गणक ज्योतिषी चिकित्सक वैद्य २७ मज्जन कहे उबटनादि सहोदर भरतादिवंधु जातिजन विरादरी इति शुभोदर कहे नीकी विधि उदरपूर्ति करिकै अथवा शुभोदर बड़े भोजनकर्ता २८॥ दंडक ॥ निपट नवीन रोगहीन बहुक्षीरलीन पीन बच्छ पीन तनतापन हरत हैं। तांबे मढ़ी पीठि लागे रूपकखुरन डीठि डीठि स्वर्णशृंग मन आनँद भरत हैं। कांसेकी दोहनी श्यामपाटकी ललितनोइ घटनसों पूजिपूजि पायनि परत
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