पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८६

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२८६ रामचन्द्रिका सटीक । जाके रूप न रेख गुण जानत वेद न गाथ ॥ रंगमहल रघु. नाथ गे राजशिरीके साथ ४५ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां लोकवर्णनन्नाम- कोनत्रिंशः प्रकाशः ॥ २६॥ झूमका झब्बा विनमान कहे बहुत ४२ तिनको देखिकै सबके लोचन मीनसम लोल होत हैं यह देखियत है ४३ । ४४ जाके रूपादि एको नहीं हैं ते राजश्री के साथ है रंगमहल गये तो रूपादियुक्त प्राणिन को तो लै जायोई चाहै इति भावार्थः ४५ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायां रामभक्तिप्रकाशिकायामेकोनत्रिंशःप्रकाशः ॥ २६ ॥ दोहा ॥ या तीसवें प्रकाशमें बरण्यो बहुविधि जानि ॥ रंगमहल संगीत अरु रामशयन सुखदानि १ पुनि सारिका जगाइबो भोजन बहुत प्रकार ॥ अरु वसंत रघुवंशमणि व- र्णन चंदउदार २ चतुष्पदीछंद ॥ युति रंगमहल की सहस- वदनकी बणे मति न बिचारी। अधऊरधराती रंगसँघाती रुचि बहुधा सुखकारी ॥ चित्री बहुचित्रनि परम विचित्रनि रघुकुलचरित सुहाये । सब देव अदेवनि अरु नरदेवनि नि- रखि निरखि शिर नाये ३ आई बनि बाला गुणगणमाला बुधि बल रूपन बाढ़ी। शुभ जाति चित्रिनी चित्रगेहते निकसि भई जनु ठाढ़ी। मानों गुणसंगनि यो प्रति अंगनि रूपक रूप विराजै । बीणानि बजार्दै अद्भुत गावें गिरा रागिनी लाजै ॥ १२ संघाती कहे सघन है रुचि शोभा ३ मानों गानादि जे गुण हैं तिनके संगनि समूहनिसों युक्त ने प्रति अंग हैं तिनसों युक्त रूप जो सुंद- रता के रूपक कहे विचित्र विराजत है ४॥