२८२ रामचन्द्रिका सटीक । दीपति है सो मानों भुवमें अर्थ भुवमंडलमें मंत्रिनमय कहे मंत्रिनके तेजमय अर्थ मंत्रिनके प्रताप युक्त राजाको तेज राजत है भूपनेजसम एक दीप है मंत्रिनके तेजसम मतिविदीप मंत्रिनको तेज राजतेजके प्रतिबिंयसम होतही है अथवा मानों राजाको तेज है मंत्रिन में व्याप्त राजत है मंत्रिनसम मणि हैं भूप तेजसम दीप है औ आरे कहे ताख मणिन करिकै खरे कहे नीकी विधि चित्रित हैं तिनमें वहुवास कहे सुगंधनसों भरे अनेक वासन कहे पात्र गृहग्रह में कहे स्थान स्थान में स्त्रीजन राखती हैं ते मानों मैन जो काम है ताको साजै हैं अर्थ कामके लाइबे के सुगंध हैं औ अमल कहे निर्मल सुमिल कहे गोल औ जल कहे पानी के निधान जे मोती हैं तिनके शुभ वितान कहे चंदोवा हैं तन सुख तन जो लाल अरुण सोमसम मोतिन को वितान है सुधाबिंदुसम मोती हैं सूर्यसम अरुण सेज है घोरिला धनुषके गोशा सदृश होत है औ धनुषसों गुण उतारयो जात है तब एक गोशामों लग्यो रहत है " गुणरोदामौज्यिासिंजिनी गुण इत्यमरः" औ जल श्री थलके भूरि कहे अनेक विधिके फल फूल औ अंबर वस्त्र औ पटवास कहे सुगंधचूर्ण ताकी धूरि " पिष्टातः पटवासक इत्यमरः"औ जाको हिय में देवता अभि- लाष करत हैं सो ऐसो स्वच्छ यच्छकर्दम "कर्पूरागुरुकस्तूरीकंकोलैर्यक्ष- कर्दमः" औ कुंकुम केसरि नौ मेदौयवादि कहे उबटन औ मृगमद कस्तूरी, श्री कर्पूर आदि औ बीरा वनाइ बनाइकै भिन्नभिन्न भाजन पात्रनमें वनिता जे दासीजन हैं तिन भरि राखे हैं किन्नरीन कहे सारंगीनकी आपनी आपनी शक्ति सों कहे अणिमादि सिद्धिके वलसों देहनको धरिकै बहुरे कहे आज्ञा पाइ रावरी सभा सों अपने धामनको जात हैं तासों अब आपहू चलिकै राजलोकको देखिये औ तहां पौड़िये इत्यन्वयः २१।२२।२३।२४।२५॥ दोहा । कहि केशव शुकके वचन सुनि सुनि परमवि- चित्र ॥ राजलोक देखन चले रामचन्द्र जगभित्र २६ नाराच छंद ॥ सुदेश राजलोक आसपास कोट देखियो । रची विचारि चारि पौरि पूरबादि लेखियो । सुवेष एक सिंह पौरि एक दंतिराज है। सु एक वाजिराज एक नंदिवेष साज है २७ दोहा ॥ पांच चौक मध्यहि रच्यो सातलोकतर
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।