२७४ रामचन्द्रिका सटीक । व्याकरणे द्विजवृत्तिन हरै । कोकिल कुलपुत्र न परिहरै १० | फागुहि निलज लोग देखिये । जुवा देवारीको लेखिये ॥ नित उठिबे झोई मारिये। खेलतमें केहूं हारिये ११ ॥ चित्तकी चातुर्य करिफै औरकी चिंताके प्रहारी कहे हर्ता हैं. ६ सुंदरी स्त्री सुंदरी कहे सुंदरता युक्त साधु कहे पतिव्रता समिनी कहे हवेली चि- त्रिणी कहे चित्रिणी जाति है पुत्रिणी कहे पुत्रवती हैं औ पगिनी कहे पद्मिनी जाति है यासों या जनायो कि हस्तिनी शखिनी एकौ नहीं हैं ७ अलोक कहे अपलोक ८ चलदल पिप्पल वृक्ष बार शिरोरुह इति औ पालक चूडाकर्म क्षौरकर्म ह द्विज जे ब्राह्मण हैं तेई व्याकरण शास्त्रही मों वृत्तिको हरत हैं हरि लेत हैं अर्थ पढ़त हैं और कोऊ काहूकी वृत्ति जी- विका को नहीं हरत व्याकरणशास्त्रमों सूत्रवृत्ति प्रसिद्ध है १० बेझा नि- शाना खेलतही में काहू विधिसों हारि होति है अन्यत्र हारि नहीं होति ११॥ दंडक | भावै जहांव्यभिचारी वेधै रमै परनारी दिजैगन दंडधारी चोरी परपीरकी । मानिनीनहीं के मन मानियत मानभंग सिंधुहि उलंधि जाति कीरति शरीरकी ॥ मूले तो अधोगति न पावत है केशोदास मीचहीसों है वियोग इच्छा गंगनीरकी। बन्ध्या वासनानि जानु विधवा सुवाटिकाई ऐसी रीति राजनीति राजै रघुवीरकी १२ दोहा ।। कविकुल हीके श्रीफलन उर अभिलाष समाज ॥ तिथिहीको क्षय होत है रामचन्द्रके राज १३ दंडक ॥ लूटिवेके नाते पाप पट्टनै तो लूटियत तोरिबेको मोहतरु तोरि डारियत है। घालिबे के नाते गर्व घालियत देवनके जारिवेके नाते अघ. ओघ जारियत है ।। बांधिबेके नाते ताल बांधियत केशौ- दास मारिबे के नाते तो दरिद्र मारियत है। राजा रामचन्द्र जू के नाम जग जीतियत हारिबेके नाते भान जन्म हारियत है १४॥
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२७६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।