पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२७४

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२७६ रामचन्द्रिका सटीक दोहा ॥ कुटिल कटाक्ष कठोर कुच एकै दुःख अदेय ॥ द्विस्वभाव अश्लेषमें ब्राह्मणजाति अजेय १७ तोमरछंद ॥ बहुशब्द वंचक जानि । अलि पश्यतोहर मानि ॥ नरछांहई अपवित्र । शर खड्ग निर्दय मित्र १८ सोरठा ॥ गुण तजि अवगुणजाल गहत नित्य प्रति चालनी ॥ पुंश्चलीति तेहि काल एकै कीरति जानिये १६ दोहा ॥ धनद लोक सुरलोक मय सतलोकके साज || सप्तदीपवति महि बसी रामचन्द्र के राज २० दशसहस्र दशसै बरष रसा बसी यहि साज ॥ स्वर्ग नरक मग थके रामचन्द्रके राज २१॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां रामराज्य- वर्णनन्नामाष्टविंशः प्रकाशः ॥२८॥ द्विस्वभाव कहे दै प्रकारको स्वभाव श्लेष कवितामों है एक समय और अर्थ कहत हैं एक समय और कहत हैं और सबको एकई स्वभाव है इति भावार्थः १७ बहु कहे बहुत विधिसों शब्द जो है सोई वंचक कहे ठग है अर्थ वंचक यह जो शब्द है सोई है और कोऊ पाणी ठग नहीं है अथवा बहुत जे परस्पर कोमल भाषित शब्द हैं तेई ठग हैं अर्थ ठग सम मोहित करत हैं औ अलि जे भ्रमर हैं तेई पश्यतोहर कहे देखतहूँ चोरी करत हैं अर्थ सबके देखत भ्रमर पुष्पनसों मधु चोरत हैं १८ गुणरूप पिसानको त्यागि अवगुण रूपी भूमिको ग्रहण करति हैं पुंश्चली परकीया १६ । २० रसा पृथ्वी स्वर्ग नरकके मग थके कहे नहीं चलत अर्थ न कोऊ पाणी | स्वर्ग जाइ न नरक जाइ सब मुक्तिपुरीको जात हैं २१ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजामकीप्रसाद- निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायामष्टविंशः प्रकाशः ॥ २८ ॥ दोहा । उनतीस प्रकाशमें बरणि कह्यो चौगान ॥ अवध दीपशुककी बिनति राजलोक गुणगान १ चौपाई ॥ एक