२४ रामचन्द्रिका सटीक। ऋषिके सजि मौनहिं । केशव उठि गये भीतर भौनहिं २८ चामरछंद ।। वेदमंत्रतंत्रशोधि अस्त्रशस्त्रदै भले । रामचन्द्र लक्ष्मणौ सो विप्र क्षिप्र लैचले ॥लोभ क्षोभ मोह गर्व काम कामनाहई । नींद भूख प्यास त्रास वासना सबै गई २६ ॥ राक्षसवधमें अमित कहे संपूर्ण जो चरित्र सोरामचन्द्रमय कहे रामचन्द्र चरितमय रामचन्द्रचरितस्वरूपनि जिनको विश्वामित्रहीको चरित्र मानौ अर्थ जो राक्षसवधर्म वा वेधनादिकृत रामचन्द्र करि हैं सो कृत रामचन्द्रद्वारा है विश्वामित्रही करिहैं आशय यह कि यामें कछु श्रम रामचन्द्रको नहीं है ये केवल तुम्हारे पुत्रको यश दियो चाहत हैं याते इनसम मित्र दूसरो न जानौ अथवा रामचन्द्रमय कहे रामचन्द्र प्रति समर्पित मानिये अर्थ जो करत हैं सो रामचन्द्रको समर्पण करत हैं २६ । २७ वारिजल सों भरित रोचनको वारिद मेघ भये अरुण रंग? आंसुनकी वर्षा करन लागे २८ वेदके मंत्र औ तंत्रशास्त्र के मंत्र शोधि शोधिकै दियो अथवा वेदके मंत्र दिये बलातिवला- विद्या दियो है सो वाल्मीकीयरामायण में लिख्यो है औ तन्त्रशास्त्र के मंत्रन सों शोधि शोधिकै मन्त्रित करिकै अस्त्र शस्त्र दिये क्षिप कहे जल्दी तिन विद्यनके प्रभाव सों लोभादिकी वासना दूरि भई ॥ यथा रघुवंशे "तौ व- लातिबलयोः प्रभावतोः विद्ययोः पथि मुनिप्रदिष्टयोः । मम्लनुर्न मणिकुट्टि- मोचितौ मापार्श्वपरिवर्तिनाविव " २६ ॥ निशिपालिकाछंद ॥ कामवन राम सब वास तरु दे- खियो। नैन सुखदैन मन मैनमय लेखियो। ईश जहँ कामतनु के अंतनु डारियो । छोड़ि वह यज्ञथल केशव निहारियो ३० दोहा । रामचन्द्र लक्ष्मणसहित तन मन अतिसुखपाइ ॥ देख्यो विश्वामित्रको परम तपोवन जाइ ३१॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्री- रामचन्द्रचन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांरामचन्द्र- लक्ष्मणयोर्विश्वामित्रतपोवनगमनंनाम द्वितीयः प्रकाशः॥२॥
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