पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२६४

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२६४ रामचन्द्रिका सटीक । धरणिधर शेप ११ हरि जे रामचन्द्र हैं तिनके अभिषेकोत्सव के प्रा. नंद में भीने इत्यर्थः १२ रस घृतादि १३ भांतिन भांति तीनि छन्द में एकवाक्यता है सरसी तड़ाग ता आंगन में प्रतिबिंबित जे संबके लोचन हैं सेई मनोज के काम के मीन मत्स्य हैं अथवा मनोजविलासी कहे काम के | खेलिबे के मीन हैं १४ ताही तड़ागमें पुरइनि पत्र सम हैं १५ नाही तड़ाग में भाजन कहे पात्र सरोज सम फूलि रहे हैं प्रतिबिंब जलदेव सम हैं १६ सुरभि सुगंधित अथवा सुंदर " सुरभिहेन्नि चम्पके ॥ जातीफले मातृभेदे रम्ये चैत्रवसन्तयोः । सुगन्धौ गवि शल्लक्यामिति हेमचन्द्रः " अम्बर सुगंध वस्तुविशेष " अम्बरं न द्वयोर्कोन्नि सुगन्ध्यंतरवस्त्रयोरिति मेदिनी" स. रिसों बराबरिसों अर्थ मृगमदादि सब सम घसिक १७ दल पत्र.भाजन पात्र १८ एकै अपूर्व वादित्र बाजने १६ ॥ तरु ऊमरिको आसन अनूप । बहु रचित हेममय विश्व- रूप ॥ तहँ बैठे आपुन आइ राम । सिय सहित मनोरति रुचिर काम २० जनु घन दामिनि आनंद देत । तर कल्प कल्पवल्ली समेत ॥ है कैधौं विद्या सहित ज्ञान । के तपसंयुत मन सिद्धि जान २१ कै विक्रमयुत कीरति प्रवीन । कै श्री- नारायण शोभलीन ॥ कै अतिशोभित स्वाहा सनाथ । के सुंदरता श्रृंगार साथ २२ सुंदरीछंद ॥ केशव शोभ नक्षत्र विराजत । जाकहँ देखि सुधाधर लाजत ॥ शोभित मोतिन के मतिके गन । लोकनके जनु लागि रहे मन २३ दोहा॥ शीतलता शुभता सबै सुंदरताके साथ ॥ अपनी रविकी अंशुलै सेवत जनु निशिनाथ २४॥ ऊमरि गूलरि. हेममय कहे सुवर्णमयी विश्व कहे संसारके रूप अर्थ संसार के वस्तु स्वरूपन करिकै रचित है चित्रित है२० कै तपसंयुक्त सिद्धि कहे तपसिद्धि है यह मनमें जानु इत्यर्थः २१ श्रीलक्ष्मी सनाथ कहे अग्निसहित श्रृंगार रस अथवा भूषणन को श्रृंगार किये सों सुंदरता बढ़ति है सासों जानों २२ ॥ २३ ताही छत्र में तर्क है शीतलता औ शुभता कहे