रामचन्द्रिका सटीक । २३ | सुवर्णको कालसेन चांडालके हाथ अपना विकाइ सौभार सुवर्ण विश्वामित्र को दियो फेरि चांडाल की आज्ञा ते श्मशान घाटपर उचित द्रव्य लेबेको बैठे हैं कछू दिनमें पुष्प तोरत में रोहिताश्वको सर्प काट्यो मरयो ताको लै मदना वहाइवे को गई तहां चांडालको उचित पंचमुद्रा लैहीकै बहावन दियो है याप्रकार सुतको शोच छोड्यो सत्य पाल्यो यह संक्षेप कथा लिख्यो है विशेष सों हरिश्चन्द्रोपाख्यान पुराणन में प्रसिद्ध है २०।२१।२२॥ राज वहै वह साज वहै पुर। नाम वहै वह धाम वहै गुर॥ झूठेसों झूठइ बांधत हो मन । छोड़तही नृप सत्यसनातन २३ दोहा ॥ जान्यो विश्वामित्र के कोप बढ्यो उर भाइ । राजादशरथ सों कह्यो वचन वशिष्ठ बनाइ २४ षट्पद ॥ इन ही के तप तेज यज्ञकी रक्षा करि हैं। इनहीं के तप तेज सकल राक्षसबल हरि हैं ॥ इनहीं के तप तेज तेज बढिहैं तन तू- |रण । इनहींके तप तेज होहिंगे मंगल पूरण ॥ कहि केशव |जय युत आइहें इनहींके तप तेज घर । नृप वेगि राम ल- क्ष्मण दुवौ सौंपो विश्वामित्रकर २५ ॥ साज छत्र चामर चमू आदि नाम यश गुरु वशिष्ठ झूठे जे पुत्रादि हैं तिन |सों झूठई कहे वृथाही मनको बांधत हौ लगावत हो अथवा झूठेसों कहे झ- ठेन सहित है अर्थ पुत्रादि झूठे माया के प्रपंच हैं तिनसों मिलिकै झूठई जो सुठाई है तासों मनको बांधत हो अर्थ कि ना वांधौ अथवा झूठेकीसों कहे झूठेकी तरह जैसे झूठा प्राणी झुठाईमें मन लगावत है तैसे तुमहूं लगावत हौ औ सनातन कहे परम्परा को सत्य छांडत हौ देनकहि अब नहीं देत सोन चाहिये २३ । २४ तेज प्रताप तूरण जल्दी मंगल विवाहादि २५ ॥ सोरठा ॥ राजा औरन मित्र जानहु विश्वामित्र से ॥ जिनको अमित चरित्र रामचन्द्रमय मानिये २६ दोहा॥नृप पै वचन वशिष्ठको कैसे मेट्यो जाई । सौंप्यौ विश्वामित्र कर रामचन्द्र अकुलाइ २७ पंकजवाटिकाछंद ॥ राम चलत नृप के युगलोचन । वारिभरित भये वारिदरोचन ॥ पांयनपरि
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