२५६ रामचन्द्रिका सटीक । महाउरसम.लिलार में लाग्यो पावक अग्नि शोभित है ऐसे सदा सुरत- चिह्नयुक्त प्रसन्न है हमारे समीप आये इति शेषः २६ ।। महादेव-तारकछंद ॥वर मांगि कछू ऋषिराज सयाने । बहुभांति चले तपपंथ पयाने ॥ वशिष्ठ ॥ पुरवो परमेश्वर मो मन इशा । सिखवो प्रभु देव प्रपूजन शिक्षा २७ शिव-दोहा।।राम रमापति देव नहिं रंगन रूपन भेव ॥ देव कहत ऋषि कौन को सिखऊं जाकी सेव २८ वशिष्ठ-तोमर छंद ॥ हम कहा जानहिं अज्ञ । तुम सर्वदा सर्वज्ञ । अब देव देहु बताइ । पूजा कहौ समुझाइ २६ शिव ॥ सतचित्प्रकाश प्रभेव । तेहि वेद मानत देव । तेहि पूजि ऋषि रुचि मंडि । सब प्राकृतनको छडि ३० पूजा यहै उर भानु । निर्व्याज धरिये ध्यानु ॥ यों पूजि घटिका एक । मनु कियो यज्ञ अनेक ३१॥ चले तपपंथ में अर्थ उचित तपपंथ में तुम बहुभांति पयाने कहे गमन कयो है अर्थ बड़ो तप कस्यो है २७ । २८ । २६ सत् कहे सत्यरूप चित् कह चैतन्यरूप जो प्रकाश कहे ज्योति जो रामचन्द्रको प्रभेव कहे भेद है अर्थ रूपांतर है ताको वेद देव मानत हैं प्राकृत कई लघु गणेशादि ३० | निर्व्याज कहे निष्कपट ध्यानको धरिये यहै ता देवकी पूजा है अर्थ ताकी पूजा केवलं ध्यान ही है और नहीं है ३१ ।। जिय जान यहई योग । सब धर्म कर्म प्रयोग॥ सब रूप पूजि प्रकास । तब भये हमसे दास ॥ यह वचन करि पर- मान । प्रभु भये अन्तर्धान ३२ दोहा ॥ यह पूजा अद्भुत अ- गिनि सुनि प्रभु त्रिभुवननाथ ॥ सबै शुभाशुभ वासना में जारी निजहाथ ३३ झूलनाछंद॥यहि भांति पूजा पूजि जीव जो भक्त परम कहाइ । भवभक्तिरसभागीरथीमहँ देहि डु-
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२५९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।