रामचन्द्रिका सटीक । २५१ है तेहिते उबरै कहि केशव काहे न पाठ पढ़ाई २३ ॥ यामें जीव प्रति काहूकी शिक्षा है सो प्रसंग पाइ रामचन्द्र कहत हैं हे मन मूढ़ ! जड़जीव तू मनोज कंदर्परूपी जो जहाज है तामें चढ्यो पापरूपी पयोनिधि समुद्र में पैरत है.अर्थ कामयश परस्त्रीगमनादि पाप करत फिरत है तहां अनेक अरमानादि ते उत्पन्न जो क्रोधरूपी बड़वानल है तामें जऊ कहे यद्यपि डोई कहे जरिहू गयो है तऊ कहे ताहूपर मनोज जहाज में चढ़ि काम समुद्र में पैरिवो यह जो खेल है ताको तू नहीं तजतो एतेह पर लोभ रूप प्रवाह बढ्यो है जामें ऐसी जो झूठरूपी तरंगिणी नदी पापसमुद्र में मिली है तामें उरझत है अडि जात है अर्थ लोभवश अनेक झुटाई करत फिरत सो या प्रकार है या समुद्र में तुम बूड़त हो सो जासों उबर कहे निकरै सो केशव यह जो पाठ है ताको आजु तक काहे न पढ़यो अर्थ भगवान् को न कहे न जप्यो अवहूं भगवान् को नाम जपियो तोको उचित है इति भावार्थः ॥ केशव पदके कहिबे को आशय यह कि के जले शेते इति केशवः" अर्थ वे समुद्र के जनहीं में सोयो करत है तासों समुद्र सों उबारिवो उनको सहज है और नामके जाहू सों या समुद्र सों न कढ़ि है इति भावार्थः २३ ॥ दोहा ॥ जो केहूं सुखभावना काहूको जग होति ॥ काल अायु पटतंतु ज्यों तबहीं काटत जोति २४ ब्रह्मविष्णु शिव आदि दै जितने दृश्य शरीर ॥ नाश हेतु धावत सबै जमों बड़वानल नीर २५ ॥ यामें समय के व्यवहार कहत हैं जो केहूं कहे कौनेहूँ प्रकार सो सुखभा- वना कहे मोक्षकी वासना जगमें काहू प्राणी के होते है तो काल कहे समयरूपी जो आयु मूषक है सो ता भावना की जोति कडे डोरि प्रथा अंकुर को पटवस्त्र के तंतु सूत्रसम तबहीं कहे ताहीसमय काटि देत है अर्थ समय मसि फेरि देति है जासों मुखभावना दूरि वैनाति है २४ देहव्यवहार कहि अब यामें मृत्युकृत पीड़ा कहत हैं ब्रह्मा श्री विष्णु औ शिवपादिक जितने दृश्य शरीर हैं ते अनेक यज्ञादि कर्म करि उत्पत्ति पालन संहार करनादि प्रभुत्व पाइ पुनि पुनि या संसार में नाशही के हेतु धावत हैं कहे प्राप्त होत हैं अर्थ या संसार में इनको सबको नाश होत है मृत्युहन पीड़ा
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