पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२४४

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रामचन्द्रिका सटीक । २४३ |जोर में अर्थ युवावस्था में चित्तरूपी तो चिता है ताम जीव को कहे दुचिताई जो सशय है सो जारति है जैसे चिता में मर पाणी को जारियत है तैसे चित्तरूपी चिता में जीव को दुचिताई जारति है इत्यर्थ औश्रहि कहे सर्पसम जो काप है सो दीह कहे बहुत अर्थ नीकी विधि जीव के त्वचा धर्म की चचाई कहे चबात है अर्थ काढत है अथवा त्वचासम अहिकोप चवात है अर्थ सर्प त्वचा में काटत है तब जीवको परमपीजा होति है नौ कोप तौ जीवही को काटत है ताको पीड़ा तो अकथनीय है औ जब कामकंदर्प भ थवा अभिलाषरूपी जो समुद्र है ताके तरग के झकोरनमें झून्यो इत उत आयो गयो तब हे महाप्रभु! जीव जो है सो भूल्यो अर्थ अपनपी को भुलान्यो महाप्रभु ऋषिन को सबोधन है चितादाह सर्पदश समुद्र तरंग के झकोग्न में सबको विकलतासों अपनपौ की मुवि भूलि जाति है ६ यौवन जोर में और कहा होत है सो कहत हैं धमसम जो नीलनिचाल कहे श्याम वस्त्र है तामें सोहति है इहा केवल धूमकी समता के लिय नीलनिचोल को अग्निदाह भयसों परनारी लोकभयसों छुइ नहीं जाप्ति देखत ही मनको दुवौ मोहत हैं परनारी मोहति कहे वश करति है अग्नि मोहति कहे | भयसों अथवा तेजसो मूचित करति है सो पापरूपी यौवन है ताम चारि कहे गामी अर्थ जैसे अग्नि वन में विहरति है तैसे परनारी पापही में विह रति है ऐसी परनारीरूपी जो पावकशिला है सो नरको जारति है परस्त्री को देखि जीव विकल होत है इत्यर्थ. ७ ॥ बंक हिये न प्रभा सरसीसी । कर्दम काम कछ् परमीसी॥ कामिनि काम कि डोरि प्रसीसी । मीन मनुष्यन को बन- सीसी॥ मनुष्यन के में हिय हैं तिनकी जो ममा शोभा है सोई धक करे कुटिल अर्थ पाठ रहित अथवा गहिर सरसी कहे तड़ागसी है अर्थ हृदय तडाग सम है श्री काम अभिलाषरूपी जो कर्दम कीच है तासों कछु कहे फल्छु अर्थ थोरीहू परसी को युक्त है यासों या जनायो कि अधिक कामयुक्त की का कथा है ता सरसी मैं कामिनि को खीरूपी जो कामकदर्प शिकारी की डोरी है सो असी है कहे लगी है ते स्त्री मीनरूपी जे मनुष्य हैं तो मनुष्य पदते मनुष्यनके जीव जानो तिनको कहे तिनके वश करि को बनसीसी gewig GRAMA.