पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२४२

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✓ रामचन्द्रिका सटीक। २४१ इत्यादि मों या जनायो कि याही विधि राजा थारो करत है साको बहुत मानिलेत है ३७ पदवी राज्य ३८ | ३६ ॥ चौपाई ॥ कहाँ कहांलगिताके साज। तुम सब जानत हो ऋषिराज ॥ जैसी शिवमूरति मानिये। तैसी राज्यश्री जा- निये ४० सावधान है सेवै जाहि। सांचो देत परमपद ताहि॥ जितने नृप याके वश भये। पेलि स्वर्ग मग नहि गये ४१ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांराज्पश्रीदूषण- वर्णननाम त्रयोविश प्रकाश ॥ २३ ॥ ४० शिवमूर्तिह को सावधान है विधिपूर्वक सेवन पनि परै तौ वर्ग प्राप्त | होत है न धनै तौ चित्तविक्षपादि है अत में नरक प्राप्त होत है जैसे याहूको सावधान है जनकादि सम सेवन करै तौ स्वर्गसाई परतु सावधान है सेवन नहीं बनि परत तासों केतने भूप बेन आदिक लगे मगसों पेलि नरकको गये है तासों हम राज्यश्री ग्रहण न करिहै इति धानार्थ ११ ॥ इति श्रीमजगजननिज रकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जमजानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकायत्रियोविंश प्रकाश ॥२३॥ दोहा॥चौबीसवें प्रकाशमें राम विरक्त बखानि ॥ विश्वा- मित्र वशिष्ठसों बोध कही शुभ मानि १ राम-अमृतगति छद ॥ सुमति महाऋषि सुनिये । जगमहे सुक्ख न गुनिये॥ मरनहिं जीवन तजहीं। मरिमरि जन्म न मजही २ उदरनि जीव परत है। बहुदुखसों निसरत है ॥ अतहु पीर अनतहीं। तनउपचार सहतही ३ दोधकछंद॥पोच भली न कळू जिय जाने।ले सब वस्तुन आनन माने॥शैशवते कछु होत बढ़े। खेलत हैं ते अयान चढेई है पितु मातनिते दुखभारे। श्री- गुरुते अतिहोत दुखारे ॥ भूख न प्यास न न जोवे । | खेलन को बहुभातिन रो ५॥ UAALIL ME