२३८ रामचन्द्रिका सरीक। धनादि दीवो वक्रता ऋद्धके वधादि कम्यिो मुरतुग्ग उई भा चचतताकी बात को क्षण औरक्षणम और कहियो करितो २४ जकालकट माणसा मोहिन पूञ्छित भये माणीको फनु सुधि नही रहति है तैसे राज्यश्री में मोहित राजन को ईश्वरादिरी सुधि मलि जानि ई इत्पर्ष निष्रतापश राजन को जीवधानि में कद दया नही आग इत्यर्थ राज्यश्री के वश मत्त के राजा हित वस्तुको विचार नहीं करत इत्यर्थ श्री विष्णु कारिक भ्रमाया जो मदर है ताके सगसों राज्यश्री क उदर में भ्रगमई कहे भ्रमाधिाय भई अर्थ मदरको भ्रमत दखि भ्रम सिरपोरान के उरण सदापधु आदि कनहू को प्रतिकृतना भ्रम रहत है इत्यर्थ २५ ॥ दोहा ॥ शेप दई बहुजिह्वता वहुलोचनता चारु ॥ अप्स रानिते सीखियो अपरपुरुषसत्रारु २६ चौपाई॥ दृढ गुन बांधे हू बहुभाति । को जाने केहि भांनि विलाति ॥ गज घोटक भट कोटिन अरे । खडग लता पजरहू पर २७ अपना इति कीन्हे बहुभाति । को जाने कित है भजि जाति ॥ धर्म कोपमडिन शुभदेश । तजति भ्रमरि ज्यों कमलनरेश २८ ॥ बहुनिइना कहे एक निहासों अनक जिन्नासग रात पहि बहुलोचनना को लोचनसों अनेक लोचनसम दखिनो अधे राना भति वताहा होत हैं। भौ चारष्टि सो सर्वत्र देखा है अपर कहे अनापुरुष पनि राधार अर्थ एक | पुरुष राजा को डि एक पास जाडो २६-३ इदको अन्वय एक है गुनपद श्लेष है शूरतादि औ डोरीगन औ घोटक घोड़ औ भर कोटित रक्षा के अर्थ और कहे हठ भरै भो निनली खड्ग तरवारिरूपी जो ला है ताके पजरह में पर अर्थ तरवारि हाथ में लेकै अनेर गनादि चौसी दे रता करें ताहूपर और अनेक विधि अपनादनि कीन्ह अधे प्रीति कीन्हेहू धर्म राजधर्म औ कोमलता कोष खजाता श्री सिफाद नामों गडित युक्त श्री शुभदेश | कहे मुदर है राज्यभूमि नापी भी मुष्ट है देश उत्पत्ति रथान जाफो औ कमलरूपी जो नरेश सजा है ताको तजति है औ को जाने कहा है भागि नाति है सुदरगादिहू के वश नहीं होनि इनि भावार्थ -७।२८ ॥ ययपि होइ शुद्धमति सन्तु । फिरै पिशाची ज्यों उनमत्तु ॥
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