२० रामचन्द्रिका सटीक रूप ७ देखि तिन्हें तब दूरिते गुदरानो प्रतिहार ॥ आये विश्वामित्रजू जनु दूजो करतार ८ उठि दौरे नृप सुनतही जाइ गहे तब पाँइ ॥ लैंपाये भीतर भवन ज्यों सुरगुरु सुरराइ सोरठा ॥ सभामध्य बैताल ताहि समय सो पढि उठ्यो ॥ केशव बुद्धि विशाल सुंदर शूरो भूप सो १० ॥ १ . २ कृतयुग सत्ययुग ३ मल्लबाहु युद्धकर पायक पटेवाज नटत कहे नाचत हैं नर्तक नृत्यकारी ४ । ५ जहां सिंहासनमें राजा दशरथ बैठे हैं सो आदि है तहांते जहां पर्यंत दरबारी बैठे हैं सो अन्त है सो आदि ते अंत तक दरबारिनमें कौन दास कहे सेवक है औ कौन संत कहे स्वामी हैं यह नहीं जानियत अर्थ सव दरवारी राजसाज सँवारे हैं " सद्विद्यमाने सत्ये च प्रशस्तार्चितसाधुपु इत्यभिधानचिंतामणिः ॥" इहां अर्चितपदको | पर्याय स्वामी जानौ ६ देवदेव इन्द्र ७ गुदरानो जाहिर कियो कर्तार ब्रह्मा ८ । वैतालभाट १०॥ बैताल-घनाक्षरी ॥ विधिके समान हैं विमानी कृतराज हंस विविध विवुधयुत मेरुसों अचल है । दीपति दिपति अति सातौ दीपदीपियत दूसरो दिलीपसों सुदक्षिणा को बल है ॥ सागर उजागरकी बहु वाहिनी को पति छनदान प्रिय किधों सूरज अमल है। सब विधि समरथ राजै राजा दशरथ भगीरथ पथगामी गंगाकैसो जलहै ११ दोहा॥ य- द्यपि ईंधन जरि गये अरिगण केशवदास ॥ तदपि प्रतापा- नलन के पलपल बढ़त प्रकास १२ तोमरछंद॥ बहुभांतिपूजि सुराइ । करजोरिके परिपाइ ॥ हँसिकै कखो ऋषि मित्र। अब बैठ राज पवित्र १३ मुनि-सुनि दान मानसहंस । रघुवंश के अवतंस ॥ मनमांह जो अतिनेहु । यकबात मांगे देहु १४॥ विमानीकृत कहे वाहनीकृत, राजहंस जिन करिकै ब्रह्माको हंस वा- इन है और राजा विमानीकृत कहे मानरहित किये हैं राजनके हंस जीव Back
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२३
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