२२६ रामचन्द्रिका सटीक। वशिष्ठ कुलइष्टदेव । इन कपिनायकके सकल भेव ॥ हम बूड़त हैं विपदासमुद्र । इन राखि लियो संग्रामरुद्र ४३ ॥ जब भरत शत्रुघ्न सीता के पद लागे तब सीताजू आशिष दियो कि शत्रुध्नकहे शत्रुनको मारो ३८ । ३६ । ४०। ४१ । ४२ कपिनायक सुग्रीव सग्राम में रुद्र कहे भयकर ४३ ॥ सब प्रासमुद्रकी भूसुधाइ। तब दई जनकतनया बताइ॥ निजभाइ भरत ज्यों दु:खहर्ण । अतिसमर अमर हत्यो कुभ- कर्ण ४४ इन हरे विभीषण सक्लशूल ।मन मानतहौं शत्रुघ्न- तूल ॥ दशकठ हनत सब देवसाखि। इन लिये एक हनु- मत राखि ४५ तजि तिय सुत सोदर बंधु ईश मिले हहिं काय मन वच ऋषीश ।। दह मीच इंद्रजितकी बताय । अरु | मत्र जपत रावण दिखाय ४६ ॥ तोटकछंद ॥ इन अंगद शत्रु अनेक हने । हम हेतु सहे दिन दुःख घने ॥ बहु रावणको सिखदै दुख लै । पुनि पाये भले सियभूषण लै ४७ ॥ सुधाइ कहे हुँदाइकै कुंभकर्ण को तौ रामचन्द्रही माखो है परंतु कुभकर्ण की नासा श्रवण प्रथम सुग्रीव काटि लियो है साही समय में रामचन्द्र मारयो है तासों ताको मारिषो सुग्रीवही पर स्थापिस करत हैं अमर कहे वाहूके मानि लागा नहीं ४४ जर मेघनाद ब्रह्मपाश में हनुगार को बाधि लै गयो है तब रारण हनुमान के वध करिव की आज्ञा राक्षसनको दियो है तर विभीषण दून मारिये न राज लोडि दीजई एरो वचन कमि हनुमान को पचायो है सो क्या चौदह प्रकाशमों ई ४५ सोढर कुभरण यधु धाति समूह ईश राण के मन्त्र जपत रामय अगदादि गये है ता समय विभीपण के फड पचा नहीं है तो दहा रामन सी उनिसा जातो कि विभीषणही के बताये सों अमदादि गये हैं ४६ हम तु पहे हमारे हेतु ६७॥ दशकके जाय जो गढथली । तिनके तनसों वहुभाति दली ॥ महिमें मयकी तनया वर्षी । मति मारि अकपनको
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