पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२२४

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रामचन्द्रिका सटीक। २२३ के मनते उपजै । भुवदेव सनाढयते मोहिं भजे ॥ दीन्हो तुमही तिन जो हितजू । हो तुम ब्रह्मपुरोहितजू २५ ॥ गिरीश महादेव जाते कहे जाकारण ते तुम ब्रह्मचर्चा कहे सनाढ्य ब्रामणन की पूजा करी है अथवा ब्रह्म जे तुम हो ते सनाढ्यनकी अर्चा आदिही सौ करी है २३ । २४ यह छंद छ चरणको है चारि सुत सनक सनदन सनातन सनत्कुमार वेदमये कहे वेदस्वरूप ये नारायण के वचन शिवप्रति हैं तिनै कहिकै चरणमों भरद्वाज रामचन्द्र सों कहत हैं कि हे रामचन्द्र ! नारायणरूप जे तुमही तिनहीं तिनको हितसों यह वचन दियो है वचन इति शेष ॥ कि तुम अम कहे परब्रह्म के पुरोहित हैहौ २५ ॥ गौरीचंद ॥ ताते ऋषिराज सबै तुम छोडो । भूदेवस- नाब्धनके पद मांडो॥ दीन्हो तुमहीं तिनको बररूरे । चौहूं युग होह तपोबलपूरे २६ उपेंद्रवज्राचंद॥सनाढ्यपूजाअध- भोपहारी । अखंड पाखंडललोकधारी॥अशेषलोकावधि भूमिचारी । समूल नाशैं नृप दोषकारी २७ श्रीरामतोटक छंद ॥ हनुमंत बली तुम जाहु तहां । मुनि वेष भरत्थ बसत जहां ॥ ऋषिके हम भोजन आज करें। पुनि पात भरत्यहि अंकभरै २८ ॥ चतुष्पदीछंद ॥ हनुमंत विलोके भरत स- शोके अंग सकल मलधारी । बकला पहिरे तन शीश जटा- गन हैं फलमूलभहारी ॥ बहुमत्रिनगण में राजकाजमें सब सुखसों हित तोरे। रघुनाथपादुका तन मन प्रभुकरि सेवत अंजलि जोरे २६॥ 'ब्रह्मपुरोहितहबे को इन्हें तुम्हारोई घर है भी तुम ब्रह्मही ताते कहे ता हेतु ते २६ अखंड कहे पूर्ण पाखंडललोकधारी कहे इंप्रलोक की धा रणहारी है जो कोऊ सनायन की पूजा करत है ताको पूर्ण इंद्रलोक देति है इति भावाथे, अशेषलाकावधि कद चौदहों लोकपर्यत जो भूमिकहे स्थान है तिनमें चारी कहे गमनकारी है अर्थ नौदहों लोकमे सनाध्यनकी पूजा सब करत है अथवा चौदहों लोकनमें नयनमार्ग श्रवणमाग गमन करति