२२२ रामचद्रिका सटीक। वेश्यादि के अर्थ दान १५ सब के मीमांसकादिकन के मत कहे सम्मत अर्थ सम्मत फल को लीजै कहे पाइयत है अर्थ मीमांसकादिकन को मत है कि यज्ञादि सो ऐहिक पारलौकिक फल होत है सो सब फल दाननहीं सों | पाइयत है तासों सबको यज्ञादिकन को छोड़िके दिनप्रति दानही को | दीजै १६ । १७ यत् कहे जो ज्ञानतः कहे जानिकै अज्ञानत कहे बिन जाने कोऊ पाणी किंचित् कहे कछु पाप कहे पाप जो है ताहि कुरुते कहे करत है सो प्राणी गोचर्ममात्रेण भूमिदानेत कडे गोचर्ममात्र भूमिदान करत सते शुद्ध होत है अपिशब्द को अर्थ यह कि अधिक भूमिदान करैतासों तो शुद्ध यामें गोचर्म को लक्षण कहत हैं १८ सप्तहस्तेन दण्डेन कहे सात हाथ के दड कारकै त्रिंशइए। कहे तीसदण्ड करतर्सते निवर्ननसंज्ञक भूमिक्षेत्र होत है इस्तममाण दुइस दश औं दशतान्येर कहे तेई निवसनही एक | गोचमसज्ञक क्षेत्र दोन नै हराप्रमाण इपीससै २१०० सो गोचर्मप्रमाणहू | भूमिको दवा कह दे रबर्ग कहे सगको महीयने कहे जात है १६ यर्नरै. कहे जिन नरन करिकै अन्यायेन को न्याय विनाही भूमि हता | कहे हरीगड मो जिन नरन करिक अपहारिता कहे हराइ गई ता भूमि करिकै हरन्त कहे हरनहार गौ हारय-न हरापनदार ने हन्यने कहे पीडाको प्राप्त होत है अथ सो भूमि निनका पीड़ा करती है श्री तेषा सप्तम कुलमपि इन्यने अथ नाही भूमिकरि तिनके सातपुश्निपयन गितर पीडा को प्राप्त होत हैं अथेने दााकी भूमिको नदोष छोरत है औ वृथा- पयाद कहि छोरारत है सो भूमि लिनको औ दिन दुहुन के सप्तपुरिन पर्यत पितरन का पितृलोक में पीड़ा करनि ई २. ऋषि क्योकि मनाम्यन गोदान देहु काहेते इन सनायन मा आदिही सौ अव जरसों इनकी उत्पति है नाही सो तुम पवेफराहित दे आये ही २१॥ २२॥ भरद्वाज ॥ गिरीश नारायणपै सुनी यो। गिरीश मोसा जो कहीं कहाँ त्यों । सुनो सो सीतापति साधुचर्चा । करी सोजाते तुम ब्रह्मपर्चा २३ नारायण-मोटनकलद ॥ भोते जलनाभिसरोज वढयो । ऊंचो अति उग्र प्रकाश चढ्यो। ताते चतुरानन रूपरयो । ब्रह्मा यह नाम प्रकट भयो २४ ताके मनते सुत चारि भये । सो है अतिपावन वेदमये॥चौह जन
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