पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२२२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२१ रामचन्द्रिका सटीक। कहे जब ब्राह्मण मांगै भाइ तब जो दान है सो अधम है और सेवादान कहे अब ब्राह्मण सेवा करै तब जो दान है सो निष्फल है अर्थ वामें कछू पुण्य नहीं है १० कालपाइ अर्थ चद्र सूर्य ग्रहणादि समयमों ११ प्रापनो प्राश्रित | जो साधुकर्मा ब्राह्मण है ताको जा व्यतिक्रमेत् कहे व्यतिक्रम करत है अर्थ तिन्, छोड़ि और को दान देतहै ताको पुण्यचय कहे पुण्यसमूह आशु कहे शीघ्रही क्षय याति कहे क्षयको मास होत है यामें सशय नहीं अपि शब्दते या जनायो कि थोरी पुण्य तो क्षय को मा होतिही है १२ आश्रितको व्यति- क्रम न कियो चाहिये तासों पहिले निज कहे पापनेवर्ती कई आश्रितनको | देहु औ निजवृत्तिन पाठ होइ तौ निज कहे आपने इहा है दानहीसों वृत्ति कहे जीविका जिनकी नागर कहे नगरवासी १३ । १४ ॥ दानते दक्षिण वाम बखानो । धर्मनिमित्त ते दक्षिण | जानो ॥ धर्मविरुद्धते वाम गुनौ जू । दान कुदान सबैते सुनौ जू १५ देहु सुदानते उत्तम लेखो। देहु कुदान तिन्हें जनि देखो ॥ छोडि सबै दिन दानहिं दीजै । दानहिं ते सबके मत लीजै १६ दोहा ।। केशव दान अनतहैं बने न काहू देत ॥ यहै जानि भुवभूप सब भूमिदान ही देत १७ “श्लोक ॥ यस्ति- चित्कुरुते पाप ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपि वा ॥ अपि गोचर्ममा- त्रेण भूमिदानेन शुध्यति १८ सप्तहस्तेन दण्डेन त्रिशद्दडै- निवर्तनम् ॥ दशतान्येव गोचर्म दत्त्वा स्वर्ग महीयते १६ अन्यायेन हृता भूमिर्नरैरपहारिता । हरन्तो हारयन्तश्च हन्यते सप्तमं कुलम् २० " राम-दोहा || कौनहि दीजै दान भुव हैं ऋषिराज अनेक । देहु सनाढयन आदिदै आये सहित विवेक २१ श्रीराम-उपेंद्रवज्राबद। कहौ भरद्वाज सनाब्य को है। भये कहांते सब मध्य सोहे। हुते सबै विप्र प्रभावभीने। तजे ते क्यों ये प्रतिपूज्य कीने २२ ॥ भारणोच्चादनादि के लिये जो दान है. सो धर्मविरुद्ध जानौ अथवा है