१६ रामचन्द्रिका सटीक। अद्भुत नगर निहारि ४८ सोरठा ॥ नागर नगर अपार महामोहतम मित्रसे॥ तृष्णालताकुठार लोभसमुद्रअगस्त्य से ४६ दोहा॥ विश्वामित्र पवित्र मुनि केशव बुद्धिउदार ॥ देखत शोभा नगरकी गये राजदरबार ५० ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांविश्वामित्रस्या- ऽयोध्यागमनंनाम प्रथमः प्रकाशः॥१॥ मूल जर अधोगति नरक औ नीचे की गति गमन हुताशन अग्नि दुर्गति नरक औ दुष्करि कहे गति जिनमें कुटिलता इति श्रीफज द्रव्य श्री विल्व- फल कुचनकी उपमा देवेको परिसंख्यालंकार है ४७ चलदल पीपरवृक्ष बनी वाटिका सोई विधवा है याहू में परिसंख्या है ४८ जागर प्रवीन मित्र सूर्य जो सदा सष वस्तु पाइवे की इच्छा है सो तृष्णा जानौ औ जो कछू | वस्तु देखि सुनिकै इच्छा चलै सो लोभ जानौ ४६ । ५० ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानीजानिप्रसादायजनजानकी. प्रसादनिर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायां प्रथमः प्रकाशः ॥१॥ दोहा ॥ या दूसरे प्रकाश में मुनि अागमन प्रकास ॥ राजासों रचना वचन राघव चलन विलास १ हंसछंद ॥ आवत जात राजके लोग ॥ मूरति धारी मानहु भोग २ मालतीबंद ॥ तहँ दरबारी । सब सुखकारी ॥ कृतयुग कैसे । जनु जन वैसे ३ दोहा॥ महिष मेष मृग वृषभ कहुँ भि- रत मल्लं गजराज ॥ लरत कहूं पायक नटत बहुनर्तक नट- राज ४ समानिकाछंद ॥ देखि देखिकै सभा। विप्र मोहियो प्रभा॥राजमंडली लसै। देवलोकको हँसे ५ मल्लिकाछंद ॥ देशदेशके नरेश । शोभिजै सबै सुवेश ॥ जानिये न श्रादि अंत । कौन दास कौन संत ६ दोहा ॥ शोभित बैठे तेहि सभा सातदीप के भूप ॥ तहँ राजादशरथ लसैं देवदेवअनु. .
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