रामचन्द्रिका सटीक। २१५ अल्पधी,कल्पशाखी विमोहैं ॥ धरे शृखला दु खदा है दुरते। मनो शम्भुजी सगलीने अनते ४२॥ यामें आश्रम के ऋषिजनन को वर्णन है जहां जा पाश्रम म ऋषिन के कोमल वनकलही के वस्त्र साहत हैं परतु जिनका देखि अल्पधी लघुबुद्धि अर्थ की स्पर्धायुक्त है बुद्धि जिनकी ऐसे जे कल्पशाखी कल्पवृक्ष हैं ते विमोहैं कहे मोहित होत हैं अथवा अन्पकी धी कहे बुद्धिसों अर्थ हम इन सौ लघु हैं या बुद्धिसो मोहत हैं केवल पचनही सों एतो देत हैं तो | कल्पवृक्षनहू को मोह होत है कि हमहू इनसम न भये अथवा अल्पसाक्षी पाठ होइ नौ जिनको देखि अम्पकी धी करिकै अर्थ कि हम इनसों लघु हैं या बुद्धिसों कन्पाक्षी जे कल्पवयोनी मार्कंडेय श्रादि हैं से मोहत हैं श्री केवल भृखला जो कठिन बंधन है ताको धारण करे हैं परंतु दुरतै कहें बड़े जे औरन के दुख है तिनको दाइ कहे नाश करत हैं अर्थ ऐसे ऐसे प्राचार्य कृत्यन सों युक्त हैं," शृङ्खला पुंस्कटी वस्त्रबन्धे च निराडे त्रिष्यिति मेदिनी" महादेव ननत जे शेष हैं तिनको संग में लीन्हें हैं धारण करे २ औ ऋषिजन अनत जे भगवान हैं तिनके ध्यान सो अथवा कथून सों | सगमें लीन रहते हैं ४२ ॥ मालिनीचंद ॥प्रशमित रज राजै, हर्षवर्षा समेसे । विरल जटन शाखी स्वर्नदीकूल कैसे ॥ जगमग दरशायी सूरके अशु ऐसे । स्वरगनरकहता नाम श्रीराम कैसे ४३ भुजग- प्रयातछद ॥ गहे केशपाशे प्रियासी बखानों । कॅ शापके त्रासते गात मानो। मनो चन्द्रमा चन्द्रिका चार साजें। जरासों मिले यों अरबाज राजे ४६ ॥ फेरि कैसे हैं ऋषिजन सो कहस है वर्षासमय में रज जो धूरि है सो प्रशामित कहे नष्ट राजतिा है ऋषिन के रजोगुण सब पि सत्त्वगुणी हैं। इति भावार्यः स्वर्नदी गगा के फूल को शाखी टक्ष विरल कहे भकट जटा जज है तिन सहित हैं इहा स्वदीफूलको साखी कहि अतिपावनताहू मनायो माया स्वर्नही उपनामात्र है नदीमा के कूल को जानौ नदी के प्रवाह के वेग सों जकै खुन्नि जाती है प्रसिद्ध है औ ऋषिजन जरा मे DE LUNAROWA
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