पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२१०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०६ रामचन्द्रिका सटीक । जानो र चन्द्रमा मोषधीश है नौ रोहिणी चन्द्रमा की स्त्री है ता सबन्ध सों जानो ओषधिन को अग्नि सम ज्वलन प्रसिद्ध है धरापुन मगल के जैसे स्वर्णमाला प्रकाशै कहे शोभे धरापुत्र सम अग्नि है स्वर्णमाला सम सीता हैं भोगिफण तक्षकको अरुण वर्ण प्रसिद्ध है १० आशावरी रागिनी अ शोक वृक्ष लग्ना कहे सलग्न स्थित इति जो वनदेवता है ताके सम है अशोकक्ष को अरुण वर्ण है ११ ॥ विजयछद ॥ है मणि दर्पणमें प्रतिबिंब कि प्रीति हिये अबरज्म अभीता । पुंजप्रतापमें कीरतिसी तप तेजनमें मनो सिद्ध विनिता ॥ ज्यों' रधुनाथ तिहारिये भक्ति लसै उर केशवके शुभगीता । त्यो अवलोकिये आनंदकंद हुता- शनमध्य सवासम सीता १२ दोहा॥ इंद्र वरुण यम सिद्ध सब धर्मसहित धनपाल || ब्रह्म रुद्र ले दशरथहि पायगये तेहि काल १३ अग्नि-सततिलकछद ॥ श्रीरामचन्द्र यह संतत शुद्ध सीता । ब्रह्मादि देव सब गावत शुभ्र गीता॥ हूजै कृपाल गहिजै जनकात्मजाया । योगीश ईश तुम हो यह योगमाया १४ श्रीरामचन्द्र हँसि अक लगाइ लीन्हो । संसारसाक्षि शुभपावक आनि दीन्हो ॥ देवान इंदुभि बजाय सुगीत गाये । त्रैलोक्यलोचनचकोरनि चित्र माये १५ ॥ कि अनुग्न पई अनुरागी हत्यमों अभीना निश्चला शनि है विनीता उत्तम १२ । १३ यागीश ने महाश्व के निनके ईश कहे स्वामी तुम हो अर्थ विष्णु हो औ यह जो सीना है सो योगमाया लम्पी है पुनरुक्ति " नित्य पसि योग प्राप्नोनीनियरोगमाया लक्ष्मी अथ विष्णु क वक्ष रस्थल में सटा युक्त रहति है तागों योगमाया नाम है योगमारा हि गा! पनायो कि पहजो सदा नुम्हारे पक्षम्स्थल म प्राप्त रहति है कह रपहू मिन नहीं होति लासों भदाप है ५४ श्रीरामचन्द्र को है तासों त्रैलोक्य लोचनचकोर बनो १५॥