पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२०८

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२०६ रामचन्द्रिका सटीक। | सकलत्र सबधु क्रिया सब कैकै॥ जनसेवक सम्पति कोश सँभारो। मयनंदिनिके सिगरे दुख टारो ५६ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां रावणवधवर्णन नामैकोनविंश. प्रकाश ॥ १६ ॥ जनसेवक कहे सेवकजन अथवा जनबधु जनसेवक चाकर सम्पत्ति अश्वगज वस्त्रादि कोश खजानो ५६ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकोजानिप्रसादाय अनजानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकायामेकोनविंशः प्रकाश ॥१६॥ दोहा॥ या बीसवें प्रकाशमें सीतामिलन विशेखि ॥ ब्रह्मादिक की प्रस्तुती गमन अवधपुरि लेखि १ प्राग वरणि अरु वाटिका भरद्वाजकी जानि ॥ ऋषि रघुनाथ मिलाप कहि पूजा करि सुख मानि २ श्रीराम-तारक्छद ॥ जय जाय कहो हनुमंत हमारो। सुख देवहु दीरघ दु ख बिदारो॥ सब भूषण भूषितकै शुभगीता। हमको तुम वेगि दिखावहु सीता ३ हनुमत गये तहहीं जहँ सीता । तब जाय कही जयकी सब गीता ॥ पग लागि कह्यो जननी पगुधारो। मग चाहत, रघुनाथ तिहारो ४ सिगरे तन भूपण भूपिन ! कीने । परिकै कुसुमारलि अग नगीने ॥ द्विज देवनि बदि। पढी शुभगीता । तब पावक अपनली चदिगीता ५ भुजग-1 प्रयातबद ॥ सवस्त्रा सवै अगशृगार मोह । पिलोके रमा देव देवी विमोहैं ॥ पिताप्राज्यों मन्यका शुभ्रगीता । लसे अग्निके अक त्यों शुद्द सीना ६॥ १।२।३ । ४ सीना को बादे करे बन्ना करिक देवतन दिन ब्रा मण समान शुभगीता कहे मगलपाठ पदयो अर्थ जमे गमन समय मा श्राह्मण 5