२०५ रामचन्द्रिका सटीक। ज्यों धनुषगुण शैलशृग सदृश रावण शिर हैं इसवशावली सहश श्वेत छत्र है ४६ रिपुषल करिकै खडित हैं रणपांडित्यादि जाके ऐसे जे लक्ष्मण हैं वे भूलिरहे कहे आश्चर्ययुक्त है रहे हैं तासों मनसा वाचा कर्मणा रावण सों लरिवो तजिकै ५० मैं तन औ मनसों लज्जित होत हौं ५१ ।। राम-छप्पै ॥ जेहि शर मधुमड मरदि महासुर मर्दन कीन्हेउ । मारेहु कर्कश नर्क शङ्ख रुतिशङ्ख जो लीन्हेउ । निष्कंटक सुरकटक कसो कैटभवपु खंड्यो । खरदूषण त्रि- शिराकबध तरुखड बिहड्यो। कुभकर्ण ज्यहि संहखोपल न प्रतिज्ञाते टरौं । तेहि बाण प्राण दशकंठके कठदशौ खडित करौं ५२ दोहा॥ रघुपति पठयो श्राशुही असुहर बुद्धि नि- धान ॥ दशशिर दशहू दिश न को बलिदै आयो बान ५३ मदनमनोरमाबद ॥ भुवभारहि सयुत राकसको गण जाह रसातलमें अनुराग्यो । जगमें जयशब्द समै तिहि केशव राज विभीषणके शिर जाग्यो॥ मयदानवनंदिनिके सुखसों मिलिकै सियके हियको दुख भाग्यो । सुर दुदुभिसी सँगजा शर रामको रावणके शिरसाथहि लाग्यो ५४ मंदोदरी-वि- जयछदाजीतिलिये दिगपाल शचीके उसासन देवनदी सब सूकी । वासरहू निशि देवनकी नरदेवनकी रहसपति ठूकी। तीनिहुँ लोकनकी तरुणीनकी बारी बॅधी हुती दंडदुहूकी । सेवन श्वान शृगालसो रावण सोवत सेज परे भवभूकी५५॥ फर्कश कठोर तरुखड समताल ५२ असुहर माणहर ५३ मयदानव- दिनि मैदोदरी सहोक्ति अलंकार है ५४ सदा संवण के भयसों स्वर्गसों | भागे जे इद्र हैं तिनके विरहसों शची इन्द्राणी के जे उष्ण उसास है तिन सौ देवनदी आकाशगगा सब सूझी कहे सूखिगई ५५ ॥ राम- तारकछंद ॥ अब जाहु विभीषण रावण लैके। da VIDEO
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