२०० रामचन्द्रिका सटीक । | माया के विलासी जे विष्णु है तिनको हति कहे मारिकै तोको लक्षि जो लक्ष्मी हैं ताको दासी ल्यावतो यासों या जनायो कि रामचन्द्र जो करत है सो सब परशाही के बल सों करत हैं या रामचन्द्र की शक्ति कछु नहीं है २४ प्रौढ़ जो धृष्टता है ताकी रूढ़ि कहे परिपक्कता ताको समूह कहे समूह अर्थ अतिधृष्ट ऐसा जो रावण है सो यज्ञ करिषेको गूढगेहमों जात भयो मदोदरी की ऐसी कटु बातें सुनि कळू लाज न फियो तासों अतिधृष्ट कयो | "समूढः पुंजिते भुग्ने इति मेदिनी" सो शुक्र के मंत्रको शोधि कहे शुद्धोच्चार करिफै हामके अर्थ जब उधत भयो तब निशक कई शका ते रहित है प्रक हृदय जिनको ऐसे जे वायुपुत्रादि हैं ते धावत भये तब लंकनाथ के जे अफ कहे राजचिह हैं छत्र चामरादि तिन्हें पायो कहे देख्यो तब जान्यो कि याही मंदिर में रावण हैहै ता लिये या प्रकारको उपद्रव करयो सो आगे | कहत हैं २६ तान डोरी २६ । २७ ॥ गहें दौरि जाको तर्जे ताकि ताको । तजें जादिशाको भजै वाम ताको ॥ भलीकै निहारी सबै चित्रमारी | लहै सुदरी क्यों दरीको विहारी २८ तजै दृष्टिको चित्रकी मृष्टि धन्या। हमी एकताको तही देवस्न्यातहीं हॉसही देव- कन्या दिसाई । गही शकिकै लारानी वताई २६ ॥ फूल्यो कहे मानदित जा पुनरी का अगढ दौरिकै गहत है नाको पुनरी जानि तजत हैं औ अगद जा दिशाको तमन हैं ना दिशाको वाय मदो | दरी भनति है अथवा ना दिशाको अर्थ ना दिशाकी पुतरिनको अगद गात हैं ता दिशामें अगदको तारिक देखिके ता दिशाको तजे फहे छा इति है अर्थ ता दिशाकी पुतरिन को छाति है औ गा दिशाको अगद तजत हैं ता दिशा को मदोदरी भज कहे माप्त होति है अथवा गागति है टरी पदरा २८ धन्या को अनिनिपुण जो चित्रकी सृष्टि है सो अगदी हरिको तजे कहे त्याग करनि है अथ गदादरी पास टि नही जानदेनि महोदगो ना देखन देशी इति अथवा धन्या जो चित्रकी सृष्टि है तामें |मदोदरीकी दृष्टिको न कहे त्याग करति है अर्थ आपने पास नहीं आरन देति यह मदादरी है येतो ज्ञान दृष्टिम नहीं होत इति भाषा ॥या प्रकार
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