१६६ रामचन्द्रिका सटीक। प्रकप रखो ताको हनुमान् है । यथा वाल्मीकीये "स चतुर्दशभिर्वाणैर्निशि नर्देहदारणैः । निर्षिभेद महावीरो हनुमन्तमकम्पनः १ ततो वृक्ष समुत्पाव्य कृत्वा वेगमनुत्तमम् । शिरस्यभिजधानाशु राक्षसेन्द्रमकम्पनम् २ यथा पम पुराणे ॥ जधान हनुमान्भूयश्चतुर्थेहन्यकम्पनम् " श्री देवांतक भौ नारांतक के भतक अगद औ मेघनाद औ मकराक्ष औ महोदर के प्राणहर लक्ष्मण | यह प्रतिनिर्भय समय स्वरूप जानौ २१ वर कहे बलसों लेके या प्रकार अवतार धरि धरि हम तीनों लोक पांटि दियो अब तुमको यह जो परशा है ताको दैकै कहा कौन स्थान देहि जामें तुम रही परशुरामकी कथा कहि | यह जनायो कि जिन सहस्रार्जुन तुम्हें बांधि राख्यो तिनको हम क्षणमें | मास्यो वामन कथा कहि या जनायो कि जिन बलि की दासिन पातालसों तु, गहिकै निकारि दीन्हों तिनको बांधिकै हम पाताल पठायो तैसे तुमहूं को मारि विभीषण को लंका दे २२ शुभ निशुमादिके युद्ध में हरिहरादि सब हारिगये हैं तब दुर्गा लरिकै मारयो है यह कथा मार्कण्डेयपुराण में प्रसिद्ध है २३ ॥ रावण ॥ छलकरि पठयो तो पावतो जो कुठारे। रघुपति वपुराको धावतो सिंधुपारे। हति सुरपतिभर्ता विष्णु माया विलासी। सुनहिं सुमुखि तोको ल्यावतो लक्षि दासी २४ चामरचंद ॥ प्रौदरूढिको समूढ गूढ गेहमें गयो । शुक्र मंत्र शोधि शोधि होमको जहीं भयो । वायुपुत्र बालिपुत्र जामवत धाइयो । लेकमें निशक अंक लकनाथ पाइयो २५ मत्तदंतिपंक्ति वाजिराजि छोरिकै दई । भांतिभांति पक्षिरानि भाजि भाजिकै गई ॥पासने बिछावन वितानतान तूरियो। यत्र तत्र छत्र चारु चौर चारु चूरियो २६ भुजगप्रयाताद ॥ भगी देखिकै शंकि लंकेशबाला । दुरी दौरि मंदोदरी चित्रशाला।। तहां दौरिगो बालिको पूत फूल्यो। सबैचित्रकी पुत्रिका देखि भूल्यो २७ ॥ सिंधुके पार पावती पहे भागिगातों सुरपी इंद्र तिनके भनौ रेशक औ -
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